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वह जीवन होता है-अभी और यहां। वह कहीं और गति नहीं करता। उसमें कोई प्रयोजन नहीं होता; वह इच्छा-शून्य होता है। ऐसा नहीं कि वह आनंदित नहीं होता-केवल वही आनंदित होता है। जब कोई इच्छा नहीं रहती तब तुम्हारी संपूर्ण ऊर्जा एक आह्लाद बन जाती है। तुम स्पंदित होते हो, थिरकते हो प्रसन्नता से। तुम अस्तित्व के उस उत्सव में सम्मिलित होते हो जो निरंतर चल रहा है; जो निरंतर प्रवाहमान है।
तुम इसे चूक रहे थे तो केवल इसीलिए क्योंकि तुम स्वप्न देख रहे थे। तुम इसके हिस्से न थे, क्योंकि तुमने अपनी निजी आशाएं बना ली थीं। तुम मूढ़ थे, 'ईडियट' थे।'ईडियट' का अर्थ होता है वह व्यक्ति जिसकी निजी आशाएं हैं; वह जो समग्र के साथ नहीं बह रहा है, जो अपने ढंग से चलने की कोशिश कर रहा है, जो अपनी मर्जी को समग्र के विरुद्ध चलाने की कोशिश कर रहा है - वह है मूढ़, 'ईडियट'। ईडियट शब्द का मूल अर्थ है अलग, व्यक्तिगत।
आशाएं व्यक्तिगत होती हैं; जीवन समष्टिगत होता है। आशाएं निजी होती हैं। अस्तित्व किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं है। सारे व्यक्ति
अस्तित्व से।
क्या तुमने ध्यान दिया कि तुम्हारे सपने संसार की सबसे निजी घटना हैं? तुम किसी मित्र को भी अपने सपनों में निमंत्रित नहीं कर सकते हो। तुम अपनी प्रेमिका को भी नहीं बुला सकते हो अपने सपनों में। तुम अकेले ही होते हो वहां। क्यों सपनों को झूठ माना जाता है? क्योंकि वे व्यक्तिगत होते हैं। तुम किसी और को नहीं बुला सकते अपने सपनों में गवाह की तरह, वह असंभव है।
मैंने सुना है कि मिस्र का एक सम्राट फैरोह, जो कि थोड़ा झक्की था, जैसे कि सम्राट करीब-करीब होते ही हैं, थोड़े न्यूरोटिक-एक दिन उसने सपना देखा और उसने अपने सपने में अपने एक मंत्री को देखा। वह बहुत क्रोधित हुआ। अगले दिन उसने कुंडी पिटवा दी सारे राज्य में कि किसी को उसके सपनों में आने की इजाजत नहीं है। यह बिना आज्ञा प्रवेश है; और अगर किसी ने बिना आज्ञा प्रवेश किया, उसके सपनों में आया, उसे तुरंत फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा। और बहुत से लोग बाद में फांसी पर चढ़ा दिए गए, क्योंकि वे उसके सपनों में आए।
तुम्हारे सपने तुम्हारे हैं, उनमें कोई प्रवेश नहीं कर सकता। और अगर कोई प्रवेश करता है, तो वह तुम्हारा सपना ही है; ऐसा नहीं कि उसने सच में प्रवेश किया है। सपने व्यक्तिगत होते हैं, नितांत व्यक्तिगत। इसीलिए वे झूठे होते हैं। कोई भी चीज जो व्यक्तिगत है, वह झूठी होगी ही। सत्य समष्टिगत होता है। मैं देख सकता हूं इन वृक्षों को, तुम भी देख सकते हो इन वृक्षों को, लेकिन मेरे सपनों के वृक्ष केवल मैं ही देख सकता हूं। मैं तुम से नहीं कह सकता कि आओ और साक्षी हो जाओ। इसीलिए सुबह मैं स्वयं भी अनुभव करता हूं कि वह केवल सपना था, सत्य न था।
तुम्हारी आशाएं तुम्हारी व्यक्तिगत आकांक्षाएं हैं। जब तुम निराश हो जाते हो जब मैं कहता हूं : 'निराश हो जाओ, ' 'सारी आशा गिरा दो,' तो मैं यह क कि समग्र अस्तित्व के साथ बहो