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और उसे घर में लिए नहीं आना है; जब तुम जानते हो कि आफिस के मन को आफिस में ही कैसे छोड़ आना है और फाइलों को घर साथ नहीं लाना है तब सत्य घटता है। सत्व है संतुलन; सत्य है समत्व।
सात्विक आदमी के लिए सक्रिय विधियां आश्चर्यजनक रूप से सहायक होंगी, क्योंकि वे उसके जीवन में न केवल शांति ही लाएंगी, बल्कि आनंद भी लाएंगी। शांत तो वह पहले से है ही, क्योंकि संतुलन लाता है एक मौन, एक शांति। लेकिन शांति एक नकारात्मक घटना है-जब तक कि वह नृत्य न बन जाए, एक गीत न बन जाए, एक आनंद न हो जाए, वह काफी नहीं है। अच्छा है मौन होना, अच्छा है शांत होना, लेकिन उसी से संतुष्ट मत हो जाना, क्योंकि अभी बहुत कुछ तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।
शांत होना तो उस आदमी जैसा है जिसकी डाक्टरों ने जांच-पड़ताल की और उन्होंने उसमें कुछ गलत नहीं पाया। लेकिन यह कोई स्वास्थ्य नहीं है। हो सकता मार न होओ, लेकिन जरूरी नहीं है कि तुम स्वस्थ भी हो। स्वास्थ्य की तो एक अलग ही सुवास है, एक ओज है। रोग के न होने का प्रमाणपत्र स्वास्थ्य नहीं है। स्वास्थ्य एक विधायक घटना है। तुम आनंदित होते हो उससे; तम पुलकित होते हो उससे। इतना काफी नहीं है कि तुम्हें कोई रोग नहीं है। स्वास्थ्य केवल अभाव नहीं है रोग का, वह स्वयं एक मौजूदगी है।
एक शांत व्यक्ति, एक सात्विक व्यक्ति शांत तो होता है; वह बड़ी शांत जिंदगी जीता है। शांत, पर कोई मुस्कुराहट नहीं। शांत, पर ऊर्जा का कोई उमडाव नहीं। शांत, लेकिन कुछ आभा नहीं। शांत, पर अंधकार; प्रकाश नहीं उतरा होता उसमें। एक सात्विक व्यक्ति बिलकुल शांत हो सकता है, लेकिन उस
| वह नाद, वह अनाहत नाद, वह दिव्य गान नहीं उतरा होता। सक्रिय ध्यान उसकी सहायता करेगा नाचने में, नृत्य को उसके हृदय तक लाने में, गान को उसके अस्तित्व के रोएं-रोएं तक लाने में।
निश्चित ही, सात्विक व्यक्ति को सबसे ज्यादा सहायता मिलेगी, सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा। लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता, यही नियम है। यदि तुम्हारे पास है, तो तुम्हें और ज्यादा दिया जाएगा; यदि तुम्हारे पास नहीं है, तो जो तुम्हारे पास है वह भी ले लिया जाएगा।
तीसरा प्रश्न:
आपने कहा कि बुद्धत्व व्यक्तिगत होता है लेकिन क्या बुद्धत्व के बाद भी व्यक्तित्व बना रहता है?