________________
कारण को ही बदलना है। और कारण यह है. तुम उसी अनुपात में दुखी रहोगे जितने तुम शरीर से बंधे रहोगे। जितने तुम शरीर से मुक्त होते हो, उसी अनुपात में तुम आनंदित होते हो। शरीर से मुक्त होने के साथ ही आनंद बढ़ता जाता है। जब तुम शरीर से पूरी तरह मुक्त हो जाते हो तो तुम आकाश में तैरती सुगंध हो जाते हो। तुम परम आनंद को उपलब्ध हो जाते हो-जिस आनंद की. जीसस बात करते हैं, जिस धन्यता की जीसस बात करते हैं, जो बुद्ध का निर्वाण है। महावीर ने इसे एकदम ठीक नाम दिया; वे इसे 'कैवल्य' कहते हैं। तुम पूर्णरूपेण स्वतंत्र होते हो और अकेले होते हो। अब किसी चीज की जरूरत न रही; तुम स्वयं में पर्याप्त हो। यही है लक्ष्य। लेकिन लक्ष्य केवल तभी पाया जा सकता है, जब तुम बड़ी सजगता से आगे बढ़ो और लक्षणों में उलझो नहीं।
किसी को बुखार है, शरीर गरम हो जाता है, टेम्प्रेचर बढ़ जाता है-यह एक लक्षण है। टेम्प्रेचर चाहे एक सौ तीन हो, एक सौ चार हो या एक सौ पांच हो, यह एक लक्षण है, शरीर के ताप का इलाज मत करने लगना। तुम टेम्प्रेचर कम कर सकते हो : तुम व्यक्ति को ठंडे पानी के फव्वारे के नीचे खड़ा कर सकते हो, बर्फ के ठंडे पानी से नहला सकते हो। शुरू-शुरू में ऐसा भी लग सकता है कि कुछ मदद मिल रही है। लेकिन ध्यान रहे, इससे बीमारी दर नहीं होगी, शायद बीमार ही चल बसे। बीमार मर सकता है क्योंकि बुखार एक लक्षण है। बुखार इतना ही बताता है कि शरीर के भीतर बड़ी लड़ाई चल रही है-प्राकृतिक लड़ाई। शरीर के तत्व संघर्ष कर रहे हैं, इसीलिए गरमी निर्मित हो रही है। इसीलिए बुखार है। शरीर बेचैन है। गृहयुद्ध छिड़ गया है शरीर के भीतर। शरीर के कुछ तत्व लड़ रहे हैं दूसरे तत्वों से, बाहरी तत्वों से। वे संघर्ष कर रहे हैं, संघर्ष के कारण ही गरमी पैदा हो रही है।
गरमी तो केवल एक सूचना है कि भीतर संघर्ष चल रहा है। संघर्ष को ठीक करना है, न कि टेम्प्रेचर को। टेम्प्रेचर तुम्हें संदेश देने के लिए है : 'अब तुम्हें कुछ करना चाहिए; चीजें मेरी शक्ति के बाहर जा चुकी हैं।' शरीर तुम्हें एक संकेत दे रहा है. 'चीजें अब मेरी शक्ति के बाहर हैं; मैं कुछ नहीं कर सकता। कुछ करो। डाक्टर के पास जाओ, चिकित्सक के पास जाओ। मदद लो उनकी; अब यह बात मेरी शक्ति के बाहर है। जो भी किया जा सकता था मैंने कर लिया, अब और कुछ नहीं किया जा सकता है। संघर्ष आरंभ हो गया है।'
तो लक्षण का इलाज कभी मत करना और समय मत गंवाना लक्षण के इलाज में; सदा कारण को देखना।
और पतंजलि जो कह रहे हैं वह कोई परिकल्पना नहीं है, वह कोई सिधात नहीं है। योग सिद्धांतो में विश्वास नहीं करता। और पतंजलि कोई दार्शनिक नहीं हैं, वे अंतर्जगत के वैज्ञानिक हैं। और जो कुछ भी वे कह रहे हैं, वे इसलिए कह रहे हैं क्योंकि लाखों-लाखों योगियों ने उसे अनभव किया है। निरपवाद रूप से ऐसा ही है।