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यही है जीवन का विरोधाभास जीसस कहते हैं, जिनके पास है, उन्हें और मिलेगा; और जिनके पास नहीं है, उनसे वह भी ले लिया जाएगा जो उनके पास है। तामसी व्यक्ति को ज्यादा दिए जाने की जरूरत है, लेकिन उसे ज्यादा दिया नहीं जा सकता, क्योंकि उसकी ग्रहण करने की क्षमता नहीं है। सक्रिय ध्यान, अधिक से अधिक, उसे उसके तमस के बाहर सीढ़ी के दूसरे तल तक ले आएगा और वह भी इस शर्त के साथ कि वह सम्मिलित हो लेकिन इतनी सक्रियता भी उसके लिए कठिन हो जाती है कि वह सम्मिलित होने का निर्णय ले।
ऐसे लोग आते हैं मेरे पास उनके चेहरों से तुम समझ सकते हो कि वे गहरी नींद में सोए हैं, गहन निद्रा में पड़े हैं - और वे कहते हैं, 'हमें नहीं चाहिए ये सक्रिय विधियां, हमें कोई शांत ढंग बताइए।' वे शांति की बात करते हैं। वे कोई ऐसा ढंग चाहते हैं जिसे वे बिस्तर पर लेटे हुए ही कर सकें! या ज्यादा से ज्यादा वे बड़े प्रयास से बैठ सकते हैं। वह भी पक्का नहीं है कि वे बैठ सकेंगे। फिर सक्रिय ध्यान तो उन्हें बहुत ज्यादा सक्रिय मालूम पड़ता है। यदि वे पूरी तरह सम्मिलित होते हैं तो उन्हें मदद मिलेगी; निश्चित ही दूसरे प्रकार के लोगों जितनी तो न मिलेगी, क्योंकि दूसरे प्रकार का आदमी तो पहले से ही जी रहा होता है दूसरे तल पर । उसमें पहले से ही कुछ बात होती है; उसे ज्यादा मदद मिलेगी। वह इस विधि के द्वारा विश्रामपूर्ण होगा, हल्का होगा, निर्भार होगा। धीरे- धीरे वह सरका शुरू कर देगा प्रथम तल की ओर, उच्चतम की ओर
सात्विक व्यक्ति, जो निर्मल है, निर्दोष है, सब से ज्यादा मदद पाएगा। उसके पास बहुत कुछ है, उसकी मदद की जा सकती है। प्रकृति का नियम करीब-करीब बैंक जैसा है, यदि तुम्हारे पास धन नहीं है, तो वे नहीं देंगे। यदि तुम्हें जरूरत है धन की तो वे हजारों शर्तें खड़ी कर देंगे, यदि तुम्हें जरूरत नहीं है धन की तो वे तुम्हें देने के लिए आतुर होंगे। यदि तुम्हारे पास अपना ही काफी है तो वे जितना प्रकृति का नियम ठीक इसी तरह का है : तुम्हें तुम्हें कम दिया जाता है, जब तुम्हें जरूरत होती
तुम चाहो उतना देने के लिए सदा तैयार रहते हैं। ज्यादा दिया जाता है जब तुम्हें जरूरत नहीं होती। है।
अस्तित्व ले लेता है यदि तुम्हारे पास कुछ नहीं होता, और अस्तित्व हजार-हजार ढंग से दे देता है यदि तुम्हारे पास कुछ होता है।
ऊपर-ऊपर से तो ऐसा लगता है जैसे कि यह विरोधाभासी हो – गरीब को तो ज्यादा मिलना चाहिए। 'गरीब' से मेरा मतलब है तामसिक व्यक्ति। संपन्न व्यक्ति को, सात्विक व्यक्ति को तो बिलकुल दिया ही नहीं जाना चाहिए। लेकिन नहीं, जब तुम्हारे पास एक निश्चित समृद्धि होती है तो तुम ज्यादा समृद्धि को अपनी ओर खींचने के लिए चुंबकीय शक्ति बन जाते हो। गरीब आदमी दूर हटाता है; वह समृद्धि को आने नहीं देता अपने पास। गहरे तल पर, गरीब व्यक्ति इसलिए गरीब होता है, क्योंकि वह समृद्धि को आकर्षित नहीं करता। उसके पास कोई चुंबकीय आकर्षण नहीं समृद्धि को