________________ विवाह एक औपचारिकता है, एक कानूनी बंधन है। प्रेम हृदय की बात है विवाह बुदधि की। इसीलिए मैं विवाह के बिलकुल पक्ष में नहीं हूं। लेकिन प्रश्न ठीक है, प्रासंगिक है, क्योंकि कई बार मैं लोगों से विवाह करने को कह देता है। विवाह नरक है, लेकिन कई बार लोगों को नरक के अनुभव की जरूरत होती है। करो क्या? तो मुझे उनसे विवाह करने के लिए कहना पड़ता है। उन्हें जरूरत है उस नरक में से गुजरने की, और वे नहीं समझ सकते उसकी नारकीयता को जब तक कि वे उसमें से गुजरें नहीं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विवाह में प्रेम का फूल नहीं खिल सकता है; वह खिल सकता है, लेकिन आवश्यक नहीं है कि ऐसा हो। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि प्रेम से विवाह नहीं पैदा हो सकता है; वह हो सकता है पैदा, लेकिन उसकी कोई जरूरत नहीं है; उसकी कोई तर्कसंगत अनिवार्यता नहीं है। प्रेम बन सकता है विवाह, लेकिन तब वह बिलकुल अलग ही तरह का विवाह होता है. तब वह कोई सामाजिक औपचारिकता नहीं होती है, तब वह संस्थागत बात नहीं होती है, तब वह कोई बंधन नहीं होता है। जब प्रेम विवाह बनता है, तब उसका अर्थ है कि दो व्यक्तियों ने साथ रहने का निर्णय लिया लेकिन पूरी स्वतंत्रता के साथ, एक-दूसरे पर मालकियत जमाए बिना। प्रेम मालकियत नहीं जमाता, वह स्वतंत्रता देता है। और जब प्रेम विकसित होता है विवाह में, तो विवाह कोई साधारण बात नहीं रह जाती। वह एकदम असाधारण बात होती है। उसका रजिस्ट्री आफिस से कोई लेना-देना नहीं होता। शायद तुम्हें रजिस्ट्री आफिस जाना भी पड़े, सामाजिक औपचारिकताएं भी निभानी पड़े; लेकिन वे बातें केवल परिधि पर ही रहती हैं, वे केंद्रीय नहीं होती। केंद्र में होता है हृदय, केंद्र में होती है स्वतंत्रता। और कभी-कभी विवाह में भी प्रेम पैदा हो सकता है, लेकिन ऐसा कभी-कभार ही घटता है। दुर्लभ बात है विवाह में प्रेम का पैदा होना। अधिकतर तो यह एक परिचय मात्र होता है। अधिक से अधिक एक प्रकार की सहानुभूति होती है-प्रेम नहीं। प्रेम में ऊर्जा होती है; सहानुभूति ठंडी होती है। प्रेम होता है जीवंत; सहानुभूति होती है औपचारिक, कुनकुनी! लेकिन मैं क्यों कहता हूं लोगों से विवाह करने को? जब मैं देखता हूं कि वे सुरक्षा के पीछे भाग रहे हैं, जब मैं देखता हूं कि उन्हें सामाजिक समर्थन की फिक्र है, जब मैं देखता हूं कि वे प्रेम में उतर ही नहीं सकते अगर विवाह न हो, तो मैं उनसे विवाह करने को कह देता हूं लेकिन मैं उनकी मदद करता रहूंगा उसके पार जाने में। उसका अतिक्रमण करने में मैं उनकी मदद करता रहूंगा। विवाह का अतिक्रमण होना चाहिए; केवल तभी वास्तविक विवाह घटित होता है। विवाह पूरी तरह से भुला दिया जाना चाहिए। असल में जिसे तुम प्रेम करते हो उसे सदा अजनबी बने रहना चाहिए और कभी भी उसे पूरी तरह परिचित नहीं मान लेना चाहिए। जब दो व्यक्ति अजनबियों की भांति रहते हैं,