________________ तो सैनिकों को प्रेमिकाएं साथ रखने की इजाजत नहीं है। केवल अमरीकी सेना में इजाजत है-वे हर जगह हारेंगे। वे संसार में कहीं ठीक से लड़ नहीं सकते। अमरीकी सैनिक युद्ध नहीं कर सकते। अगर तुम्हारी कामवासना तृप्त है, तो लड़ने की इच्छा मिट जाती है। वे दोनों बातें जुड़ी हुई हैं। इसलिए ऐसा होता है कि जब भी कोई संस्कृति बहुत विकसित हो जाती है तो वह सदा कम विकसित संस्कृति से हार जाती है। भारत हारा हणों से, तर्कों से, मसलमानों से-वे सब बहत अविकसित जगहों से आए और उन्होंने बहुत ज्यादा सभ्य, विकसित संस्कृति को हरा दिया। जब भी कोई संस्कृति बहुत ज्यादा विकसित हो जाती है तो वह बहुत तृप्त हो जाती है, संतुष्ट हो जाती है। हर चीज इतनी शांति से चल रही होती है तो फिर कौन युद्ध करना चाहेगा? और जो बाहर से आए, वे एकदम जंगली थे, खूखार थे। बिलकुल असभ्य थे और यौन की दृष्टि से बहुत कुंठित थे। अगर तुम चाहते हो कि सेना बहुत अच्छी तरह लड़े, तो सैनिकों की कामवासना को कुंठित कर दो। फिर वे जी-जान से लड़ेंगे, क्योंकि तब लड़ना यौन का प्रतीक बन जाता है। ऐसा अभी वियतनाम में हुआ। ऐसा नहीं है कि कम्युनिस्ट जीत गए और अमरीका हार गया, बात केवल यह है कि ज्यादा समृद्ध संस्कृति सदा हार जाती है। अविकसित संस्कृति या गरीब देश, हर ढंग से असंतष्ट-यौन के लिहाज से बहत दमन भरी अवस्था वाले उनकी जीत होगी ही। जब भी एक गरीब देश लड़ता है किसी अमीर देश से, तो अमीर देश ही अंतत: हारेगा। तुम देखते हो. अगर कोई अमीर परिवार गरीब परिवार से लड़ता है, तो अमीर परिवार हारेगा। क्योंकि जब तुम समृद्ध होते हो, संतुष्ट होते हो, तो लड़ने का भाव नहीं रह जाता है; और लड़ाई में तुम कुछ खोने ही वाले हो, तो तुम लड़ना टालते हो। और गरीब के पास खोने को कुछ है नहीं-क्यों वह बचेगा लड़ाई से? असल में वह मजा लेता है लड़ाई का। उसके पास पाने को सब कुछ है, खोने को कुछ नहीं। और ऐसा ही होता है व्यक्तियों के जीवन में। यदि तुम अहिंसक हो जाते हो, यदि तुम सत्य में स्थित हो जाते हो, यदि तुम अचौर्य में प्रतिष्ठित हो जाते हो, तो अचानक तुम पाते हो कि कामवासना का बल खो जाता है। अब वह पागल आवेश न रहा। तुम चाहो तो उसका सुख ले सकते हो, लेकिन अब वह पागलपन नहीं रहता। वह ज्यादा सौम्य हो जाता है, और अंततः वह तिरोहित हो जाता है। और जब वह तिरोहित हो जाता है, तो वह ऊर्जा जो कामवासना में बंधी थी, निर्मुक्त हो जाती है। वह ऊर्जा तुम्हारा संचित ऊर्जा-कुंड बन जाती है। इसीलिए पतंजलि कहते हैं, 'जब योगी निश्चल रूप से ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब तेजस्विता की उपलब्धि होती है।' अदभुत ऊर्जा उपलब्ध होती है। ऐसा नहीं कि तुम कोई बड़े खिलाड़ी बन जाते हो, या बड़े मुक्केबाज बन जाते हो; नहीं। उस ऊर्जा का आयाम पूरी तरह अलग होता है। वह ऊर्जा है असंघर्ष की। वह ऊर्जा इस संसार की नहीं है। वह ऊर्जा वस्तुत: पुरुष जैसी नहीं है, वह ऊर्जा स्त्रैण है। जो योगी इसको