________________ लेकिन यह तो एक आदर्श स्थिति, यूटोपिया की बात मालूम पड़ती है। यह शब्द 'यूटोपिया' बहुत सुंदर है। इसका अर्थ है. 'जो कभी होता नहीं।' यूटोपिया का अर्थ है ऐसी बात जो कभी होती नहीं, जिसका होना संभव ही नहीं लगता है। बात ही असंभव मालूम पड़ती है। तो मैं तुम्हें किसी यूटोपिया की कामना करना नहीं सिखा रहा हूं। जो किया जा सकता है, और जो व्यावहारिक है, वह है-होशपूर्ण हो जाना, ताकि तुम इस उपद्रव के बाहर आ जाओ। और तुम कृपा करके दूसरों की चिंता में मत पड़ो, क्योंकि कोई उन्हें उनके उपद्रव से बाहर नहीं ला सकता है अगर वे स्वयं ही बाहर नहीं आना चाहते। अगर वे आनंद ले रहे हैं तो लेने दो उनको आनंद। अगर उन्हें सूख मिल रहा है अपने दुख में, तो रहने दो उन्हें दुखी; यह उनकी स्वतंत्रता है। किसी पर कोई चीज थोपने की कोशिश मत करना-यह अनधिकार चेष्टा है, जबरदस्ती है, हस्तक्षेप है। मेरे देखे, यह हिंसा है। प्रत्येक को अपने जैसा होने दो और अपनी स्वतंत्रता से जीने दो; तब रेचन की कोई जरूरत न रहेगी। लेकिन अभी तो हर कोई दखल दे रहा है दूसरों के जीवन में; कोई तुम्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहता। और ऐसी सूक्ष्म तरकीबें उपयोग की जाती रही हैं कि जब तक तुम बहुत ही ज्यादा सजग न होओ तुम जान न पाओगे कि किन-किन तरकीबों से तुम्हें गुलाम बनाया गया है। धर्म कहते हैं कि तुम कहीं भी हो, ईश्वर तुम्हें देख रहा है। इसका अर्थ हुआ : कहीं कोई संभावना ही नहीं अकेले होने की और स्वयं होने की। यह ईश्वर तो पीपिंग टाम मालूम पड़ता है! तुम कहीं भी हों-स्नानघर में भी वह मौजूद है, तुम्हें देख रहा है। वहां भी तुम गुनगुना नहीं सकते; वहां भी तुम दर्पण में मुंह नहीं बिचका सकते; वहां भी तुम नाच नहीं सकते; नहीं, ईश्वर देख रहा है। और 'ईश्वर' का अर्थ है बहुत गंभीर, कोई बूढ़ा-सफेद बाल, सफेद दाढ़ी, और सदा का उदासीन और गहन-गभीर-और वह देख रहा है! मैंने सुना है एक नन के बारे में जो बिना कपड़े उतारे ही स्नान किया करती थी। तो किसी ने पूछा, 'यह क्या करती हो तुम? स्नान करते समय तो तुम अपने कपड़े उतार सकती हो।' लेकिन उसने कहा, 'ईश्वर हर जगह देख रहा है, तो कैसे मैं नग्न हो सकती हूं? वह बात तो अपमानजनक होगी।' लेकिन यदि ईश्वर सब जगह देख रहा है, तो वह तुम्हारे वस्त्रों के भीतर भी देख रहा होगा! तो क्या मतलब हुआ? इसका तो मतलब हुआ कि तुम कहीं भी नग्न हो सकते हो। ईश्वर सब जगह देख रहा है. तुम बच नहीं सकते। भूल जाओ उसके बारे में। ये सूक्ष्म तरकीबें हैं। समाज ने तुम्हारे भीतर एक अंतःकरण निर्मित कर दिया है, तो कुछ भी तुम करते हो, वह अंतःकरण काम करता रहता है-समाज की सेवा में। और समाज ने तुम्हें सिखा दिया है, 'यह तुम्हारे भीतर की आवाज है।' यदि तुम मुसलमान परिवार में पैदा हुए हो, तो तुम चार पत्नियां रख सकते हो और तुम्हारा अंतःकरण कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा-चार तक। पांचवीं के साथ ही खतरा