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ओशो
प्रवचन 41 - योग है परम मिलन
योग-सूत्रः
(साधनपाद)
प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम।/18।।
दृश्य, जो कि प्राकृतिक तत्वों से और इंद्रियों से संघटित होता है, उसका स्वभाव होता है-प्रकाश थिरता सक्रियता और निष्क्रियता। और द्रष्टा को अनुभव उपलब्ध हो तथा अंतत: मुक्ति फलित हो, इस हेतु यह होता है।
विशेषाविशेषलिगमात्रालिङ्गानि गुणपर्वाणि।/19।।
ये तीन गुण--प्रकाश (थिरता) सक्रियता और निष्क्रियता - इनकी चार अवस्थाएं हैं : निश्चित, अनिश्चित, सांकेतिक और अव्यक्त।
द्रष्टादृशिमात्र: शुद्धोउपि प्रत्यानुपश्य।।20।।
द्रष्टा यद्यपि शुद्ध चेतना है, फिर भी मन की विकृतियों के मध्यम से वह देखा करता है।
तदर्थ एव दृश्यस्यात्मा।/21//