________________ लेकिन तुम आकांक्षा करते हो। अन्यथा यह आकांक्षा न करने की बात कहां से आती? तुम कामना करते हो, तुम आकांक्षा करते हो, लेकिन तुमने जान लिया है कि करीब-करीब असंभव ही है पहुंच पाना; तो तुम चालाकी करते हो, तुम होशियारी करते हो। तुम स्वयं से कहते हो, 'असंभव है पहुंच पाना।' भीतर तुम जानते हो : असंभव है पहुंच पाना, लेकिन तुम हारना नहीं चाहते, तुम नपुंसक नहीं अनुभव करना चाहते, तुम दीन-हीन नहीं अनुभव करना चाहते, तो तुम कहते हो, 'मैं चाहता ही नहीं।' तुमने सुनी होगी ईसप की पुरानी कहानियों में से एक बहुत सुंदर कहानी। एक लोमड़ी एक बगीचे में जाती है। वह ऊपर देखती है : अंगूरों के सुंदर गुच्छे लटक रहे हैं। वह कूदती है, लेकिन उसकी छलांग पर्याप्त नहीं है। वह पहुंच नहीं पाती। वह बहुत कोशिश करती है, लेकिन वह पहुंच नहीं पाती। फिर वह चारों ओर देखती है कि किसी ने उसकी हार देखी तो नहीं। फिर वह अकड़ कर चल पड़ती है। एक नन्हा खरगोश जो झाड़ी में छिपा हुआ था बाहर आता है और पूछता है, 'मौसी, क्या हुआ?' उसने देख लिया कि लोमड़ी हार गई, वह पहुंच नहीं पाई। लेकिन लोमड़ी कहती है, 'कुछ नहीं। अगर खट्टे यह एक सांत्वना है। यह जान कर कि तुम नहीं पहुंच सकते, तुमने तर्क खोज लिया कि अगर खट्टे हैं-कामना करने के योग्य ही नहीं। ऐसा नहीं कि तुम कमजोर हो, वे पाने के योग्य ही नहीं। ऐसा नहीं कि तुम हार गए हो, बल्कि तुम्हीं ने उन्हें छोड़ दिया है। मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिला हूं जिन्होंने संसार त्याग दिया है, और वे ईसप की इस कहानी से बिलकुल भिन्न नहीं हैं। मेरा बहुत से संन्यासियों से, महात्माओं से मिलना हुआ है, लेकिन तुम देख सकते हो उनकी आंखों में अभी भी अंगसे की आकांक्षा है। लेकिन वे कहते हैं कि उन्होंने सब त्याग दिया है, क्योंकि संसार असार है, भ्रम है, माया है। उन्होंने ईसप की कहानी नहीं पढ़ी है। उन्हें पढ़नी चाहिए। वह उन्हें वेद और गीता पढ़ने से ज्यादा मदद देगी। और उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए कि असल में क्या हो रहा है : यह केवल अहंकार की तुष्टि है। सांत्वना एक तरकीब है; संतोष एक क्रांति है। संतोष का यह अर्थ नहीं है कि चारों ओर असफलताओं को देख कर तुम आंखें बंद कर लो और कहो, 'यह संसार माया है। मुझे इसकी आकांक्षा नहीं।' जापान के एक बहुत बड़े कवि बासो ने एक छोटी सी हाइकू लिखी है। उसका अर्थ है, 'धन्यभागी है वह व्यक्ति, जो सुबह सूरज के प्रकाश में ओस-कणों को तिरोहित होता देख कर यह नहीं कहता कि संसार क्षणभंगुर है, संसार माया है।'