________________ शुद्धता, संतोष, तप,स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण-ये नियम पूरे करने होते है। वितर्कबाधने प्रतिपक्षभानम्।। 33 / / जब मन अशांत हो असद् विचारों से, तो मनन करना विपरीत विचारों पर। वितर्क हिंसादयः कृतकारितानुमोदिता लोभक्रोधमोहपूर्वका मृदुमध्याधिमात्रा दुःख ज्ञानानन्तफला इति प्रतिपक्षभावनम्।। 34 / / विपरीत विचारों पर मनन करना आवश्यक है क्योंकि हिंसा आदि विचार, भाव और कर्म-अज्ञान एवं तीव्र दुःख में फलित होते है-फिर वे अल्प, मध्यम या तीव्र मात्राओं के लोभ, क्रोध या मोह द्वारा स्वयं किए हुए, दूसरों से करवाए हुए या अनुमोदन किए हुए क्यों न हो। नियम ही नियम हैं : मनुष्य को दमित करने के नियम, उसके विकास में सहायता देने के नियम; निषेध के, प्रतिबंध के नियम और उसके विकसित होने में, बढ़ने में सहायता देने के नियम। वह नियम जो केवल निषेध करता है, विध्वंसात्मक होता है; वह नियम जो विकसित होने और बढ़ने में सहायता देता है, सृजनात्मक होता है। ओल्ड टेस्टामेंट के टेन कमांडमेंट्स पतंजलि के नियमों से बिलकुल अलग हैं। वे निषेध करते हैं, प्रतिबंध लगाते हैं, दमन करते हैं। सारा जोर इस पर है कि तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, तुम्हें वैसा नहीं करना चाहिए, इसकी आशा नहीं है। पतंजलि के नियम बिलकुल अलग हैं; वे सजनात्मक हैं। जोर इस पर नहीं है कि क्या नहीं करना चाहिए, जोर इस पर है कि क्या करना चाहिए। और बहुत अंतर है दोनों में। ओल्ड टेस्टामेंट में तो ऐसा लगता है जैसे कि नियम ही लक्ष्य हैं जैसे कि मनुष्य उनके लिए है, न कि वे मनुष्य के लिए हैं। पतंजलि के लिए नियमों की उपयोगिता है, लेकिन वे किसी भी ढंग से, किसी भी दृष्टिकोण से अंतिम और परम नहीं हैं। मनुष्य नहीं है उनके लिए; वे हैं मनुष्य के लिए। वे साधन हैं, दवार हैं, और उनका उपयोग कर लेना है और उनके पार चले जाना है। इस बात को ध्यान में रखना है; अन्यथा तुम पतंजलि के विषय में गलत धारणा बना सकते हो।