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मन क्यों मूढ़ता है? क्योंकि मन और कुछ नहीं सिवाय अतीत के, धूल के, जिसे कि तुमने रास्ते की यात्रा में इकट्ठा कर लिया है। पर्ते ही पर्ते हैं धूल की। यह धूल तुम्हारी बुद्धिमानी को ढांक देती है। ऐसे ही जैसे धूल से ढंका दर्पण. मन धूल है; चेतना दर्पण है। जब सारी धूल साफ हो जाती है, तो बुद्धिमत्ता प्रकट हो जाती है : जब कोई मन नहीं होता तो तुम बुद्धिमान होते हो; जब मन होता है तो तुम मूढ़ होते हो।
निश्चित ही, दो प्रकार के मूढ़ होते हैं-अज्ञानी मूढ़ और ज्ञानी मूड; वे मूढ जो कुछ नहीं जानते और वे मूढ़ जो बहुत ज्यादा जानते हैं। और ध्यान रहे, दूसरा प्रकार ज्यादा खतरनाक होता है पहले से, क्योंकि दूसरे प्रकार के दर्पण पर ज्यादा धूल होती है पहले की अपेक्षा। अज्ञानी ज्यादा आसानी से विकसित हो सकता है पंडित की अपेक्षा, उस आदमी की अपेक्षा जो समझता है कि वह जानता है। यह विचार ही कि वह जानता है, एक बाधा बन जाता है। मन बुद्धिमत्ता नहीं, अ-मन है बुद्धिमत्ता। मन एक अवरोध है।
इसे समझने की कोशिश करो। मन है अतीत अनुभव, जिससे तुम गुजर चुके, जो मृत है-मन मृत अंश है तुम्हारी सत्ता का। पर तुम उसे उठाए फिरते हो। वह तुम्हें वर्तमान में नहीं होने देता; वह तुम्हें अभी और यहीं नहीं होने देता। वह तुम्हें बुद्धिमान नहीं होने देता। इससे पहले कि तुम प्रतिसंवेदन करो, वह प्रतिक्रिया करना शुरू कर देता है।
उदाहरण के लिए यदि मैं पूछे किसी व्यक्ति से, 'क्या ईश्वर है? क्या ईश्वर का अस्तित्व है?' यदि वह मन से उत्तर देता है तो वह मूढ़ है। यदि वह कहता है, 'हा, ईश्वर है, क्योंकि उसका पालन-पोषण हआ है इस ढंग से-उसे सिखाया गया है, संस्कारित किया गया है कि ईश्वर है; वह कह देता है, 'हां, ईश्वर है'; लेकिन यह कोई विवेकपूर्ण उत्तर न हुआ। वह जानता नहीं है; किसी और ने, दूसरों ने उसे बताया है। वे भी नहीं जानते थे, किसी और ने, किन्हीं और लोगों ने उन्हें बताया था। उसने सन ली है अफवाह और वह विश्वास करता है उस अफवाह में। नहीं, वह बुद्धिमान नहीं है। वह इतना बुद्धिमान भी नहीं है कि समझे कि वह क्या कह रहा है।
या कोई आदमी कह सकता है, 'नहीं, ईश्वर नहीं है, क्योंकि उसका पालन-पोषण कम्मुनिस्ट परिवार में या रूस में या चीन में हुआ है। वह भी वही मूड मन है-संस्कार बदल गए, लेकिन मूढता वैसी ही है। वह जानता है कि ईश्वर नहीं है-बिना जाने हए ही! उसने खोजा नहीं है; उसने तलाशा नहीं है। उसने कोई छानबीन नहीं की है।
लेकिन यदि किसी बुद्धिमान व्यक्ति से पूछा जाए-बुद्धिमान व्यक्ति से मेरा मतलब उस व्यक्ति से है जो मन के द्वारा नहीं देखता है, जो मन को एक ओर रख देता है। तुम पूछो उससे, 'क्या ईश्वर है?' तुम कोई उत्तर न पाओगे। एक बुद्धिमान व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा कह सकता है, 'मैं नहीं जानता।' जब तुम कहते हो, 'मैं नहीं जानता', तो तुम थोड़ी बुद्धिमत्ता प्रकट करते हो, एक संभावना