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मैं कहता हूं तुम से, झूठ भी अच्छा है यदि वह प्रेम से जन्मा हो, और सत्य बुरा है अगर वह केवल चोट पहुंचाने के लिए बोला गया है।
ये कोई मुर्दा सिद्धात नहीं हैं। तुम्हें उन्हें समझना होगा और तुम्हें उस कुशलता को सीखना है कि उनका उपयोग कैसे करना होता है। मैंने देखा है लोगों को अच्छे सिद्धांतों को बुरे कारणों के लिए उपयोग करते हुए, अच्छा जीवन बुरे कारणों के लिए जीते हुए। तुम बड़े महात्मा हो सकते हो केवल अहंकार की तुष्टि के लिए; तब तुम्हारी धार्मिकता एक पाप है। तुम चरित्रवान हो सकते हो केवल गौरवान्वित अनुभव करने के लिए, कि तुम एक चरित्रवान व्यक्ति हो। इससे तो बेहतर था कि तुम बिना चरित्र के होते; कम से कम यह अहंकार तो न होता। यदि चरित्र केवल अहंकार का पोषण ही है तो वह चरित्रहीनता से बदतर है। तो सदा भीतर गहरे में झांकना, अपने अस्तित्व में भीतर देखना कि तुम क्या कर रहे हो, कि तुम क्यों कर रहे हो। और सतही निष्कर्षों से कभी संतुष्ट मत हो जाना-वे तो हजारों होते हैं और तुम यकीन दिला सकते हो स्वयं को कि तुम ठीक थे।
तुम घर आते हो। तुम क्रोध में हो, क्योंकि आफिस में बीस ने ठीक व्यवहार नहीं किया तुम्हारे साथ। कोई बीस कभी ठीक व्यवहार नहीं करता। क्योंकि वह बीस है इसलिए कुछ भी वह करता है, बुरा ही लगता है, खराब ही मालूम पड़ता है। क्योंकि भीतर तो तुम कुढ़ते रहते हो कि तुम नीचे हो दूसरा ऊपर है। तुम्हें नीचे होने की सच्चाई से नफरत होती है, इसलिए जो कुछ भी कहा जाता है वह बुरा लगता है। लेकिन तुम प्रतिक्रिया नहीं कर सकते, वह बात जरा मंहगी पड़ेगी। तुम क्रोध से भरे हुए आते हो घर और बच्चे की पिटाई करने लगते हो। और तुम कहते हो, '.. क्योंकि तुम बुरे लड़कों के साथ खेल रहे थे।'
बच्चा तो रोज ही खेलता है बुरे लड़कों के साथ। और कौन हैं ये बुरे लड़के? क्योंकि उन बुरे लड़कों की माताएं भी अपने बच्चों को पीट रही हैं, क्योंकि वे खेल रहे हैं तुम्हारे बुरे बेटे के साथ। कौन हैं ये बुरे लड़के? लेकिन तुम तो तर्क बैठा रहे होते हो। क्रोध मौजूद है, उबल रहा है। तुम उसे उलीच देना चाहते हो किसी पर। और निश्चित ही, केवल कमजोर व्यक्ति पर ही निकाला जा सकता है उसे। बच्चे इस दृष्टि से बड़े उपयोगी हैं। पिता क्रोध में है, तो वह पीट देता है बच्चे को; मां क्रोध में है, वह पीट देती है बच्चे को; शिक्षक क्रोधित होता है, वह पीट देता है बच्चे को। और हर कोई छोटे बच्चों पर उन चीजों को निकाल रहा होता है, जिन्हें किसी दूसरे पर नहीं निकाला जा सकता है।
मेरे देखे, यदि किसी दंपति के बच्चे न हों तो ज्यादा संभावना होती है तलाक की। यदि उनके बच्चे होते हैं, तो कम संभावना होती है तलाक की। क्योंकि जब भी पत्नी क्रोधित होती है पति पर, तो वह पीट सकती है बच्चों को; जब भी पति नाराज होता है पत्नी से, तो वह पीट सकता है बच्चों को। बच्चे एक थैरेपी की भांति हैं। वे मदद करते हैं, वे अदभुत रूप से मदद करते हैं। इसीलिए पूरब में जहां एक दंपति के अनेक बच्चे होते हैं, तलाक नहीं होता। पश्चिम में अब यह कठिन है, वैवाहिक जीवन असंभव