________________
है। और तालमेल बिठाने का प्रयत्न मत करना, इसकी कोई जरूरत नहीं है। तुम्हारा इससे कुछ लेनादेना नहीं है।
दुनिया तो अपने ढंग से चलती है। लोगों के अपने मन हैं और अपनी धारणाएं हैं और मैं धारणाओं का, परंपराओं का भंजक हूं। मैं एक झंझावात हूं तो यह स्वाभाविक है कि साधारण व्यक्ति नाराज हो जाएं। और अखबार तो सदा ही किसी सनसनीखेज खबर की तलाश में रहते हैं; अखबार उस पर निर्भर करते हैं। लेकिन जो सत्य की खोज में निकले हैं उनके लिए ये बातें बिलकुल भी महत्वपूर्ण नहीं होनी चाहिए।
तुम्हें तो बस हंसना चाहिए और आनंद मनाना चाहिए; कुछ भी गलत नहीं है इसमें। तुम्हें चोट अनुभव नहीं करनी चाहिए; उसकी कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें तकलीफ हो यह स्वाभाविक है, मैं यह समझता हूं कि अगर कोई मेरे विरुद्ध कुछ कहता है, जो कि मुझे बिलकुल जानता नहीं, और तुम मुझे बहुत समय से जानते हो-तुम सुनते हो वह-तो तुम्हें चोट लगती है; तुम उसका विरोध करना चाहते हो। पर उसका विरोध मत करो, क्योंकि वह प्रयत्न व्यर्थ है। उपेक्षा, पूरी तरह उपेक्षा ही एकमात्र ढंग है जो तुम से अपेक्षित है।
जो लोग मुझे नहीं समझते, वे ऐसा ही करेंगे; और यदि तुम प्रतिक्रिया करते हो, तो तुम उन्हें बढ़ावा देते हो। तटस्थ रहो; वे अपने आप चुप हो जाएंगे। क्योंकि जब कोई प्रतिक्रिया नहीं करता, तो सारा मजा ही खत्म हो जाता है।
और मैं भीड़ को राजी करने के लिए यहां नहीं हूं कि मैं ठीक हूं या गलत; भीड़ में मेरा बिलकुल रस नहीं है। केवल थोड़े से चुने हुए लोगों में मेरा रस है। मुझे उन्हीं के लिए काम करना है। तो यह झंझट बार-बार होने वाली है। वे नहीं जानते कि यहां क्या घट रहा है। वे जान नहीं सकते; अगर वे यहां आ भी जाएं, तो वे मुझे समझ न पाएंगे कि मैं क्या कह रहा हूं। वे गलत ही समझेंगे। तो उन्हें क्षमा कर दो और भूल जाओ।
नौवां प्रश्न:
आपके द्वारा की गई साईबाबा, कृष्णमूर्ति और अमरीकी गुरुको की आलोचना से निंदा न करने का आपका दावा खंडित मालम होने लगता है।