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इमेनुएल कांट के विषय में बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। वह नियमितता को लेकर पागल था; वह बात एक पागलपन हो गई थी। किसी भी बात को सनक मत बना लेना। उसकी तो एक नियत दिनचर्या थी, इतनी निश्चित, एक-एक पल निश्चित, कि यदि कोई व्यक्ति, कोई मेहमान आया हो, तो वह देखेगा घड़ी की तरफ और जैसे ही सोने का समय हुआ, वह मेहमान से कोई बात भी न करेगा, क्योंकि उस बात-चीत में समय लगेगा वह घुस जाएगा बिस्तर में कंबल ओढ लेगा, और वह तो सो गया और मेहमान वहां बैठा ही हुआ है! उसका नौकर आएगा और मेहमान से कहेगा, 'अब आप जाएं, क्योंकि उनके सोने का समय हो गया।'
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नौकर का इतना अभ्यास हो गया था कांट के साथ कि कोई जरूरत न थी कहने की कि आपका भोजन तैयार है, और कोई जरूरत न थी कहने की कि अब आप जाकर सोए।' केवल समय बताना पड़ता। नौकर आएगा कमरे में और कहेगा, 'मालिक, ग्यारह बजे हैं।' वह तुरंत समझ जाएगा क्योंकि कुछ और कहने की कोई जरूरत न थी ।
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वह इतना नियम से चलता था कि नौकर धौंस जमाने लगा- क्योंकि वह हमेशा उसे धमकी देता रहता, 'मैं चला जाऊंगा। मेरी तनख्वाह बढ़ाओ फौरन तनख्वाह बढ़ानी पड़ती, क्योंकि दूसरा नौकर, कोई ।' नया आदमी तो सब गड़बड़ कर देगा। एक बार उसने नौकर बदल कर भी देखा. एक नया आदमी रखा, लेकिन वह संभव न था, क्योंकि कांट तो पल-पल के हिसाब से जीता था।
वह यूनिवर्सिटी जाता; वह बहुत प्रसिद्ध शिक्षक और महान दार्शनिक था। एक दिन सड़क कीचड़ से भरी थी और बारिश हो रही थी, और उसका एक जूता कीचड़ में धंस गया तो उसने उसे वहीं छोड़ दिया वरना उसे देर हो जाए तो वह चला एक जूता पहने हुए। कोनिग्सबर्ग के विश्वविद्यालय क्षेत्र में ऐसा कहा जाता था कि लोग उसे देख कर अपनी घड़ियां मिला लेते हैं, क्योंकि उसकी हर बात बिलकुल घड़ी के अनुसार होती थी।
एक नए पड़ोसी ने कांट के घर के साथ वाला घर खरीद लिया और उसने नए वृक्ष लगाने शुरू कर दिए। शाम को रोज ठीक पांच बजे, कांट घर के उस ओर आया करता था और खिड़की के पास बेठ जाता था और देखता रहता था आकाश की तरफ। अब वृक्षों ने ढांक दिया खिड़की को और वह श्राकाश नहीं देख सकता था। वह बीमार पड़ गया । वह इतना बीमार पड़ गया... और डाक्टर कोई बीमारी भी नहीं ढूंढ पा रहे थे उसमें, क्योंकि वह इतना नियमित आदमी था। वह असल में बहुत स्वस्थ व्यक्ति था। डाक्टर कुछ पता न लगा सके; वे रोग का निदान न कर सके। तब उस नौकर ने कहां ता, ' आप परेशान न हों। मैं जानता हूं कारण । वे पेडू उनकी नियमितता में बाधा दे रहे हैं। अब वेद खिड़की पर बैठ कर आकाश को नहीं देख पाते हैं। आकाश की ओर देखना अब संभव नहीं रहा
है।'