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जब तुम नहीं होते केवल तभी यह संभव होता है। यदि तुम हो, तब वह संभव नहीं हो
पाता। यदि तुम नहीं हो, यदि मेजबान बिलकुल चला जाता है, तभी मेहमान मेजबान बनता है। वे मेहमान लाओत्सु हो सकते हैं, वे मेहमान हो सकते हैं पतंजलि। मेजबान वहां नहीं है, इसलिए मेहमान पूर्णतया उसकी जगह ले लेता है, वह मेजबान बन जाता है। यदि तुम न रहो,तब तुम पतंजलि हो सकते हो, उसमें कोई कठिनाई नहीं है। तुम कृष्ण बन सकते हो, तुम क्राइस्ट बन सकते हो। लेकिन यदि तुम रही वहां, तब यह बहुत कठिन है। यदि तुम हो वहां, तब जो कुछ तुम कहते हो भ्रांतिपूर्ण होगा।
इसीलिए मैं कहता हूं कि ये व्याख्याएं नहीं हैं। मैं पतंजलि पर चर्चा नहीं कर रहा। मैं तो अनुपस्थित हूं; पतंजलि को आने दे रहा हूं। इसलिए यह कोई व्याख्या या टीका-टिप्पणी नहीं है। व्याख्या का अर्थ होता है कि पतंजलि कुछ पृथक हैं, मैं कुछ पृथक हूं और मैं पतंजलि पर चर्चा कर रहा हूं। तब यह विकृत होगा ही। क्योंकि कैसे मैं पतंजलि पर टीका कर सकता हूं? जो कुछ मैं कहता हं वह मेरा कहना होगा। और जो कुछ भी मैं कहता हं वह मेरा अर्थ-निर्णय होगा। वह पतंजलि के अपना नहीं हो सकता। और वह शुभ नहीं है। यह ध्वंसात्मक है। इसलिए मैं व्याख्या नहीं कर रहा। मैं केवल होने दे रहा हूं। और यह होने देना संभव होता है यदि तुम न रही।
यदि तुम साक्षी हो जाते हो, तो अहंकार विलीन हो जाता है। जब अहंकार विलीन हो जाता है, तब तुम वाहन बन जाते हो, तुम एक मार्ग बन जाते हो। तम एक बास की पोंगरी बन जाते हो।
और बांसुरी पतंजलि के अधरों पर रखी जा सकती है,बांसुरी कृष्ण के अधरों पर रखी जा सकती है। वह बांसुरी वही रहती है लेकिन जब यह बुद्ध के होठों पर होती है तब बुद्ध प्रवाहित हो रहे होते हैं।
इसलिए यह कोई व्याख्या नहीं है। यह समझना मुश्किल है क्योंकि तुम तैयार नहीं हो कि होने देओ। तुम भीतर इतने विद्यमान हो कि तुम किसी और को वहां होने नहीं देते। पतंजलि व्यक्ति नहीं हैं-एक उपस्थिति हैं। यदि तुम मौजूद नहीं होते हो, तो उनकी उपस्थिति कार्य कर सकती है।
यदि तुम पतंजलि से पूछो, तो वे यही कहेंगे। यदि तुम पतंजलि से पूछो तो वे नहीं कहेंगे कि ये सूत्र उनके द्वारा रचे गये हैं। वे कहेंगे, ये बहुत प्राचीन हैं-सनातन। वे कहेंगे, लाखों और लाखों ऋषियों ने यह देखा है। मैं तो केवल एक वाहन हूं। मैं अनुपस्थित हूं और वे बोल रहे हैं। यदि तुम कृष्ण से पूछो, वे कहेंगे, 'मैं नहीं बोल रहा हूं। ये अत्यंत प्राचीन संदेश हैं। ये सदा से ऐसे रहे हैं।' और यदि तुम जीसस से पूछो, वे कहेंगे, मैं तो हूं ही नहीं। मैं नहीं हूं।