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अपने सही स्थान पर जा पड़ा है। जब कभी तुम्हें इसकी जरूरत हो, तुम इसका उपयोग कर सकते हो। यह तो पंखे की तरह है। यदि तुम इसका उपयोग करना चाहते हो, तुम इसे चला देते हो, और तब पंखा चलने लगता है। अभी तुम पंखे का उपयोग नहीं कर रहे हो इसलिए यह गैर-क्रियात्मक है। लेकिन यह वहां है, इसका होना समाप्त नहीं हुआ है। किसी क्षण तुम इसका उपयोग कर सकते हो। यह विलीन नहीं हुआ है।
साक्षीभाव द्वारा केवल तादात्म्य विलीन हो जाता है, मन नहीं। लेकिन जब तादात्म्य विलीन हो जाता है, तुम बिलकुल ही नयी सत्ता हो। पहली बार तुम जान लेते हो अपनी वास्तविक सत्ता को, अपनी सही वास्तविकता को। पहली बार तुम जान पाते हो कि तुम कौन हो। अब मन तुम्हारे आस-पास घिरी एक यंत्र-रचना का हिस्सा भर होता है।
यह तो ऐसा है जैसे तुम पाइलट बन हवाई जहाज चलाते हो। तुम बहुत से यंत्रों का इस्तेमाल करते हो, तुम्हारी आंखें कई यंत्रों के साथ कार्य करती हैं। वे लगातार इस और उस चीज का होश रखती हैं। लेकिन तुम नहीं हो यंत्र।
यह मन, यह शरीर और शरीर-मन के कई कार्य, चारों ओर हैं तुम्हारे। यही संरचना है। इस संरचना में तुम दो ढंग से हो सकते हो। होने का एक तरीका है कि स्वयं को भूल जाओ और अनुभव करो कि तुम मैकेनिज्य हो। यह है बंधन, यह है दुख,यही है जगत, संसार।
क्रियाशील होने का दूसरा तरीका यह है-सचेत हो जाओ कि तुम पृथक हो, कि तुम भिन्न हो। तब तुम यंत्र-रचना का उपयोग किये चले जा सकते हो, तो भी यह पृथक ही है। तब तुम वह नहीं हो। और यदि यांत्रिक बनावट में कुछ गलत हो जाता है, तुम इसे ठीक करने की कोशिश कर सकते हो, लेकिन घबराओगे नहीं। यदि पूरी यंत्र-रचना विलीन भी हो जाये, तो तुम्हारी शांति पा न होगी।
बुद्ध का मरना और तुम्हारा मरना दो अलग घटनाएं हैं। जब बुद्ध मरते हैं, तो वे जानते हैं कि केवल यंत्र-रचना मर रही है। इसका उपयोग हो चुका है और अब इसकी और जरूरत नहीं रही। बोझ हट गया है; वे मुक्त हो रहे हैं। अब वे बिना स्वपाकार के घूमेंगे-फिरेंगे। लेकिन जब तुम मरते हो तो वह बिलकुल अलग होता है। तुम. दुखी होते हो, तुम चीखते हो, क्योंकि तुम अनुभव करते हो कि 'तुम' मर रहे हो, यंत्र-रचना नहीं। वह 'तुम्हारी' मृत्यु है। तब वह गहन पीड़ा बन जाती है।
केवल साक्षीभाव द्वारा मन समाप्त नहीं होता है और मस्तिष्क की कोशिकाएं समाप्त न होंगी। बल्कि वे अधिक जीवंत हो जायेंगी क्योंकि उन में वंदव कम होगा और ऊर्जा ज्यादा होगी। वे ज्यादा ताजी हो जायेंगी। तुम ज्यादा सही ढंग से उनका उपयोग कर पाओगे, ज्यादा ठीक-ठीक। लेकिन तुम उनके द्वारा बोझिल नहीं होओगे। और वे कुछ करने के लिएतुम्हें विवश नहीं करेंगी। वे तुम्हें इधर-उधर धकेलेंगी और खींचेंगी नहीं। तुम मालिक हो जाओगे।