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देते हो कि वह शैतान कुछ कर रहा है। तो तुम अपने मूर्खतापूर्ण जीवन-शैली के प्रति कभी जागरूक नहीं होते हो।
या तुम इसे भाग्य कहते हो, या तुम कहते हो कि विधाता का खेल है। लेकिन तुम इस बुनियादी तथ्य को टालते जाते हो कि जो कुछ भी तुम्हें होता है, तुम्हीं उसके एकमात्र कारण हो, और भी आकस्मिक नहीं है। हर चीज का कारण होता है और तुम हो वह कारण।
कुछ
उदाहरण के तौर पर, तुम प्रेम में पड़ जाते हो। प्रेम तुम्हें एक अनुभूति देता है - एक अनुभूति कि आनंद कहीं पास ही है। तुम पहली बार अनुभव करते हो कि किसी के द्वारा तुम्हारा स्वागत किया गया है। कम से कम एक व्यक्ति तुम्हारा स्वागत करता है। तुम खिलना शुरू कर देते हो। केवल एक व्यक्ति द्वारा तुम्हारा स्वागत करने से, तुम्हारी प्रतीक्षा करने, तुम्हें प्रेम करने, तुम्हारा ध्यान रखने से तुम खिलना आरंभ कर देते हो लेकिन ऐसा केवल आरंभ में होता है, और फिर तुरंत तुम्हारा अपना गलत ढांचा कार्य करने लगता है तुम फॉरन प्रेयसी के प्रिय के मालिक हो जाना चाहते हो ।
लेकिन मालिक होना घातक है। जिस क्षण तुम प्रेमी पर कब्जा जमाते हो, तुम प्रेम को मार चुके होते हो। तब तुम दुख उठाते हो। तब तुम रोते और चीखते हो और फिर तुम सोचते हो कि तुम्हारा प्रेमी गलत है, कि किस्मत गलत है, कि भाग्य की तुम पर कृपा नहीं है। लेकिन तुम नहीं जानते कि तुमने आधिपत्य द्वारा कब्जा जमाकर प्रेम को विषाक्त कर दिया है।
लेकिन हर प्रेमी यही कर रहा है और हर प्रेमी इसके कारण दुख भोगता है। प्रेम, जो तुम्हें गहनतम वरदान दे सकता है, वह गहनतम दुख बन जाता है। इसलिए सारी संस्कृतियों ने, विशेषकर पुराने समय के भारत ने प्रेम की इस घटना को पूरी तरह नष्ट कर दिया। उन्होंने बच्चों के लिए पर-नियोजित विवाहों की व्यवस्था दे दी, ताकि प्रेम में पड़ने की कोई संभावना ही न रहे, क्योंकि प्रेम दुख की ओर ले जाता है। यह एक इतना शात तथ्य है कि यदि तुम प्रेम होने देते हो, तो प्रेम दुख की ओर ले जाता है। ऐसा माना गया कि संभावना की भी गुंजाइश न होने देना बेहतर है। छोटे बच्चों का विवाह हो जाने दो। इससे पहले कि उन्हें प्रेम हो जाये, उनका विवाह कर दिया जाये। वे कभी नहीं जान पायेंगे कि प्रेम क्या है, और तब वे दुखी न होंगे!
लेकिन प्रेम कभी दुख का निर्माण नहीं करता है। यह तुम हो, जो इसमें विष घोल देते हो। प्रेम सदा आनंद है, प्रेम सदा उत्सव है। प्रेम तुम्हें प्रकृति द्वारा मिला गहनतम आनंदोल्लास है। लेकिन तुम इसे नष्ट कर देते हो ताकि कहीं दुख में न पड़ जाओ। भारत में और दूसरे पुराने, पुरातन देशों में, प्रेम की संभावना पूरी तरह से समाप्त कर दी गयी थी तब तुम दुख में न पड़ोगे, लेकिन तब तुमने प्रकृति द्वारा मिला वह एकमात्र आनंदोल्लास गंवा दिया होगा। केवल एक