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हो। सुबह तुम अनुभव करते हो कि रात अच्छी रही। सुबह तुम ताजा, सजीव और परिपुष्ट अनुभव करते हो। सुबह तुम अनुभव करते हो कि यह रात सुंदर थी, लेकिन यह मात्र परिणाम-बोध है। तुम नहीं जानते कि नींद में क्या घटित हुआ, वास्तव में क्या घटित हुआ है। तब तुम होश में नहीं थे।
निद्रा का दो ढंग से उपयोग किया जा सकता है। पहला, ध्यान के स्वप्न में और दूसरा, सहज विश्राम की तरह। लेकिन तुमने वह भी खो दिया है। वास्तव में लते अब निद्रा में जा ही नहीं पाते। वे लगातार सपने ही देखे चले जाते हैं। कई बार, बहुत कम क्षणों के लिए, वे निद्रा को छुते हैं। और तब फिर उन्हें सपने आने लगते हैं। निद्रा की चुप्पी, निद्रा का वह आनंदमय संगीत अज्ञात हो गया है। तुमने उसे नष्ट कर दिया है। स्वाभाविक निद्रा तक विनष्ट हो गयी है। तुम इतने शिक्षित और उत्तेजित हो कि मन पूरी तरह से विवरण विलीनता में नहीं उतरता।
लेकिन पतंजलि कहते हैं कि नैसर्गिक निद्रा शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है। और यदि तुम नींद में सचेत हो सकते हो तो यह समाधि बन सकती है, यह आध्यात्मिक घटना बन सकती है। तो विधियां हैं। और हम आगे बाद में उन पर विचार करेंगे कि निद्रा, ध्यान और जागरण कैसे बन सकती है। गीता में कहा है कि योगी नींद में भी सोता नहीं है; वह नींद में भी सचेत बना रहता है। उसके भीतर कुछ जागरूक बना रहता है। सारा शरीर निद्रा में डूब जाता है, मन उतर जाता है निद्रा में,लेकिन साक्षीबोध बना रहता है। कोई जागता रहता है। मीनार जैसी ऊंचाई पर कोई द्रष्टा बना ही रहता है। तब निद्रा समाधि बन जाती है। वह परम आनन्दोल्लास बन जाती है।
और अंतिम, मन की पांचवीं वृत्ति है-स्मृति। इसका भी उपयोग या दुरुपयोग हो सकता है। यदि स्मृति का दुरुपयोग किया जाता है, तो भ्रांति बनती है। वास्तव में, तुम्हें कुछ याद भी रह जाये, तो भी तुम निश्चित नहीं हो सकते कि यह उस तरह घटित हुआ था या नहीं। तुम्हारी स्मृति विश्वसनीय नहीं है। तम इसमें बहत सारी चीजें जोड़ सकते हो। इसमें कल्पना प्रवेश कर सकती है। हो सकता है तुम इससे बहुत सारी चीजें निकाल दो, तुम इसके साथ बहुत कुछ कर लो। जब तुम कहते हो, यह 'मेरी स्मृति है, यह बहुत संस्कारित हुई होती है, बहुत बदली हुई। यह वास्तविक नहीं होती है।
____ सब कहते हैं कि उनका बचपन बिलकुल स्वर्ग जैसा था। और बच्चों की ओर देखो! ये भी फिर बाद में यही कहेंगे कि इनका बचपन स्वर्ग था, लेकिन अभी वे दुख उठा रहे हैं। और हर बच्चा जल्दी बड़ा हो जाने के लिए, वयस्क हो जाने के लिए ललकता है, हर बच्चा सोचता है कि वयस्क लोग मजे कर रहे हैं। हर चीज जो रस लेने योग्य है, वे उसका रस ले रहे हैं। वे शक्तिशाली हैं। वे सब कुछ कर सकते हैं। और वह स्वयं निस्सहाय है। बच्चे सोचते हैं, वे कष्ट पा रहे हैं। लेकिन ये बच्चे भी बड़े हो जायेंगे जैसे कि तुम बड़े हो, और तब बाद में वे कहेंगे, बचपन सुंदर था, बिलकुल एक स्वर्ग!