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दुख में तुम आत्महत्या करने की बात सोचना शुरू कर देते हो। दुख में, तुम विनाश की सोचना शुरू कर देते हो। दुख में तुम उत्सव के विपरीत छोर पर होते हो। तुम दोष देते हो। तुम उत्सव नहीं मना सकते। हर चीज के लिए तुममें दुर्भाव है। हर चीज गलत है और तुम निषेधात्मक हो। तुम बह नहीं सकते, तुम जुड़ नहीं सकते, और तुम किसी को अपने में बहने नहीं देते। तुम एक दवीप बन गये हों-पूरी तरह से बंद। यह एक जीवित मृत्य है। जीवन केवल तभी है जब तुम खुले हो और बह रहे हो-जब तुम निडर, निर्भय, खुले, अति संवेदनशील होकर उत्सव मना रहे होते हो।
पतंजलि कहते हैं कि मन दो बातें कर सकता है-यह निर्मित कर सकता है दुख या गैर-दुख। तुम इस तरह इसका उपयोग कर सकते हो कि तुम दुखी हो जाओ। और तुमने इसका उपयोग इसी तरह किया है। तुम सब इस बात में निपुण हो। इस पर अधिक बात करने की आवश्यकता नहीं है, तुम इसे जानते ही हो। तुम दुख निर्मित करने की कला जानते हो। हो सकता है तुम्हें इसका होश न हो, लेकिन यही तुम कर रहे हो निरंतर। जो कुछ तुम छूते हो, दुख का स्रोत बन जाता है। जो
कुछ भी!
मैं गरीब आदमियों को देखता हूं। स्पष्टत: वे दुखी है। वे गरीब है, जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हो रही है। लेकिन फिर मै धनवान व्यक्तियों को देखता हैं और वे भी दुखी है। ये धनवान व्यक्ति सोचते है कि धन कहीं नहीं ले जाता है। लेकिन यह सही नहीं है। धन उत्सव तक ले जा सकता है, पर उत्सव मनाने वाला मन तुम्हारे पास नहीं है। इसलिए यदि तुम गरीब हो, तुम दुखी हो। और यदि तुम धनवान हो जाते हो तो तुम ज्यादा दुखी होते हो। जिस घड़ी तुम समृद्धि को छूते हो, तुम उसे नष्ट कर देते हो।
तुमने राजा मीडास की पीक कहानी सुनी है? जो कुछ भी उसने क्या, सोने में बदल गया।
सोने को छूते हो, और तत्क्षण वह कीचड़ बन जाता है। वह धूल हो जाता है। और तब तुम सोचते हो कि इस संसार में कुछ नहीं है। धन-दौलत भी व्यर्थ है, ऐसा नहीं है। पर तुम्हारा मन उत्सव नहीं मना सकता। तुम्हारा मन किसी गैर-दुख में हिस्सा नहीं ले सकता। यदि तुम्हें स्वर्ग में भी निमंत्रित किया जाये, तो तुम वहां स्वर्ग नहीं पाओगे। तुम एक नरक का निर्माण कर लोगे। तुम जैसे हो, जहां कहीं तम जाते हो, तुम अपना नरक अपने साथ ले जाते हो।
एक अरबी कहावत है कि नरक और स्वर्ग भौगोलिक स्थान नहीं है, वे दृष्टिकोण है। और कोई स्वर्ग या नरक में प्रवेश नहीं करता। हर कोई स्वर्ग और नरक सहित प्रवेश करता है। जहां कहीं तुम जाते हो, तुम अपने नरक का प्रक्षेपण और स्वर्ग का प्रक्षेपण अपने साथ ले जाते हो। तुम्हारे भीतर एक प्रक्षेपक है। फौरन तुम प्रक्षेपण कर लेते हो।
लेकिन पतंजलि सतर्क है। वे कहते है दुख या गैर-दुख; विधायक दुख या नकारात्मक दुख; लेकिन आनंद नहीं। मन तुम्हें नहीं दे सकता आनंद; आनंद कोई भी नहीं दे सकता। आनंद