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आपने कहा कि योग एक विज्ञान है आंतरिक जागरण की एक विधि है। लेकिन 'होने का और अ-मन के निकट जाने का प्रयत्न उददेश्य और आशा को ध्वनित करता है। आंतरिक रूपांतरण की प्रक्रिया से गुजरना भी किसी उददेश्य का संकेत करता है। आशा और उददेश्य साथ लिये कोई योग के मार्ग पर कैसे बढ़ सकता है? क्या प्रतीक्षा उददेश्य का संकेत नहीं करती?
तम उद्देश्य को साथ लिये, कामना के साथ, आशा के साथ योग के मार्ग पर नहीं बढ़
सकते। वास्तव में योग का मार्ग कोई गतिमयता नहीं है। जहां तुम समझ जाते हो कि सारी इच्छाएं बेतुकी है, सब इच्छाएं दुख हैं, करने को कुछ है नहीं, क्योंकि प्रत्येक कार्य एक नयी इच्छा होगा। करने को कुछ है ही नहीं। तुम कुछ कर ही नहीं सकते क्योंकि जो कुछ भी तुम करते हो वह तुम्हें नये दुख में ले जायेगा। तब तुम कुछ नहीं करोगे। इच्छाएं मिट चुकी होंगी, मन समाप्त हो चुका होगा। और यही है योग। .तो तुम प्रविष्ट हो चुके हो। यह गति नहीं है, यह स्थिरता है।
लेकिन भाषा के कारण समस्याएं उठ खड़ी होती हैं। जब मैं कहता हूं कि तुम प्रविष्ट हो चुके हो, तो ऐसा लगता है जैसे कि तुम आगे बढ़ गये हो। लेकिन जब इच्छाएं समाप्त होती हैं, सारी गतियां थम जाती हैं, तब तुम योग में हुए – 'अब योग का अनुशासन।'
योग के नाम पर उद्देश्य साथ लेकर तुम फिर दुखों का निर्माण करोगे। रोज मैं लोगों से मिलता हूं। वे आते हैं और कहते हैं, 'मैं तीस वर्षों से योग का अभ्यास कर रहा हूं लेकिन कुछ हुआ नहीं है।' लेकिन तुमसे कहा किसने कि कुछ घटित होने वाला है? तुम कुछ घटित होने की प्रतीक्षा में लगे हुए होओगे, इसलिए कुछ घटित नहीं हुआ है। योग कहता है, भविष्य की प्रतीक्षा मत करो।
तुम ध्यान करते हो लेकिन तुम इस उद्देश्य के साथ ध्यान करते हो कि ध्यान के द्वारा तुम कहीं किसी लक्ष्य तक पहुंच जाओगे। तुम बात चूक रहे हो। ध्यान में डूबो और उसका आनंद लो। कोई लक्ष्य नहीं है। कोई भविष्य नहीं है। आगे कुछ नहीं है। ध्यान करो अगर आनंद मनाओ, बिना किसी उददेश्य के।
तब अचानक साध्य वहां होता है। अचानक बादल छंट जाते हैं क्योंकि वे तुम्हारी इच्छाओं द्वारा निर्मित हुए थे। तुम्हारा उद्देश्य वह धुआं है जो बादलों को निर्मित करता है। अब वे तिरोहित हो जायेंगे। इसलिए ध्यान के साथ खेलो, आनंदित होओ। उसे साधन मत बनाओ। वह साध्य है। समझने की सारी बात ही यही है।
___नयी इच्छाएं मत बनाओ। बल्कि समझो कि इच्छा का स्वभाव ही दुख है। तुम इच्छा के स्वभाव को समझने का प्रयत्न भर करो, तो तुम जान जाओगे कि यह दुख है।