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यह तुम पर है। यह ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हे कोई अनुभव दे रहा हूं। यह तुम पर है।
तुम ग्रहण कर सकते हो इसे। यह कोई देना नहीं है क्योंकि मैं तो दे ही रहा हूं हर समय। यह तुम पर निर्भर है कि खुले रहो और ग्रहण करो। और यह ठीक है, कि ऐसा बहुत बार बहुत लोगो को एक साथ घटता है। तब तर्क संगत मन कहता है कि मैं ही कुछ कर रहा होऊंगा, वरना क्यों ऐसा एक साथ घट रहा है बहुत लोगों को?
नहीं, मैं कुछ नहीं कर रहा। लेकिन जब कोई खुला होता है, तो वह किसी का खुलना संक्रामक होता है। दूसरे त शुरू कर देते हैं ख्लना। यह ऐसा है जैसे जब कोई खासना शुरू करता है, तो दूसरे भी खांसना शुरू कर देते हैं। यह संक्रामक होता है। एक खुलता है, और तुम अकस्मात अनुभव करते हो तुम्हारे चारों और घट रहा है कुछ, तो तुम भी खुले हो जाते हो।
___ मैं निरंतर मौजूद हूं। जब कभी तुम खुले होते हो, तुम मुझमें शामिल हो सकते हो, मुझे ग्रहण कर सकते हो, जब तुम बंद होते हो, तब तुम ग्रहण नहीं कर सकते। और यह मुझ पर ही निर्भर नहीं करता, यह तुम पर निर्भर करता है कुछ करना। निस्संदेह ऐसा घटता है जब तुम इकट्ठे होते हो क्योंकि एक खोल देता है दूसरो को। और फिर यही चलता जाता है। और यह बात जल प्रवाह-सदृश कोई घटना बन सकती है।
इंडोनेशिया में एक विशिष्ट विधि है जो जानी जाती है 'लतिहान' के नाम से। वे 'खुलना' शब्द का उपयोग करते हैं। वह जो खुला है दूसरों को खोल सकता है। वह गुरु अभी इस धरती के उन बहुत-बहुत महत्वपूर्ण व्यक्तियो में से एक है-लतिहान का गुरु, वह व्यक्ति है बापाक सुबुद। उसने कुछ लोगों को खोला, और फिर उसने उन लोगो से कह दिया पृथ्वी भर घूमने को और दूसरो को खोलने को।
और क्या करते हैं वे? बहुत सरल विधि अपनाते हैं। तुम समझ पाओगे क्योंकि तुम उसी तरह की रूपरेखा की बहुत सारी विधियां कर रहे हो। बापाक गुरू के द्वारा जो खुल गया है, वह नये साधक के साथ होता है-जिसे खुलना है उसके साथ, उस शिष्य के साथ। वे एक बंद कमरे में खड़े होते हैं। वह जो पहले से ही खुला है, वह अपने हाथों को आकाश की और उठा देता है। वह स्वय को खोलता है, और दूसरे सिर्फ वहा खड़े रहते हैं। कुछ पलों के भीतर दूसरे कंपित होने लगते हैं। कुछ घट रहा है। और जब वह खुला होता है, असीम आकाश के प्रति खुला, उस पार की अपरिसीम ऊर्जा के प्रति, तब दूसरो को खोलने की उसे अनुमति दी जाती है।
और कोई नहीं जानता कि वे क्या कर रहे होते है। स्वय करने वाला भी कभी नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है। वह तो बस वहां खड़ा रहता है और दूसरा, नवागत मात्र खड़ा रहता है निकट। वे नहीं जानते क्या घट रहा है, अत: वे बापाक सबुद को पूछते है, 'क्या है यह ?' वे करते