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ये समग्रतया विभिन्न हैं। दोनों एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते है, अत: एक को चुन लेना। संश्लेषण करने का प्रयत्न मत करना। कैसे तुम कर सकते हो संश्लेषण? यदि तुम सेक्स द्वारा बढ़ते हो, योग गिरा दिया जाता है। संश्लेषण कैसे कर सकते हो तुम? यदि तुम सेक्स को छोड़ते हो तो तंत्र गिर जाता है। कैसे तुम संश्लेषण कर सकते हो? पर ध्यान रहे, दोनों एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं; वह लक्ष्य है-अतिक्रमण।
तुम्हें कौन-सा मार्ग चाहिए यह तुम पर निर्भर करता है-तुम्हारे ढंग पर। क्या तुम योद्धा के ढंग के हो? वह व्यक्ति हो जो लगातार संघर्ष करता है? तब योग है तुम्हारा मार्ग। यदि तुम योद्धा के प्रकार के नहीं हो, यदि तुम निष्क्रिय हो, सूक्ष्म तौर पर स्त्रैण, यदि तुम किसी के साथ लड़ना पसंद न करोगे, यदि तुम वस्तुत: अहिंसक हो, तब तंत्र है मार्ग। और चूंकि दोनों एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते है, इसलिए संश्लेषण करने की कोई जरूरत नहीं।
मेरे देखे, संश्लेषणकारी, लगभग हमेशा गलत होते हैं। सारे गांधी गलत हैं। जो कोई संश्लेषण करता है गलत है। क्योंकि यह एलोपैथी को आयुर्वेद से संश्लेषित करना है, यह होम्योपैथी को एलोपैथी से संश्लेषित करना है; यह हिंदू और मुसलमान को संश्लेषित करना है, यह बुद्ध और पतंजलि को संश्लेषित करना है। संश्लेषण करने की कोई जरूरत नहीं। हर मार्ग स्वयं में पूर्ण है। प्रत्येक मार्ग स्वयं में इतना संपूर्ण है कि इसमें कुछ जोड़े जाने की कोई जरूरत नहीं है। और कोई भी जोड़ खतरनाक हो सकता है। क्योंकि एक हिस्सा जो शायद एक खास मशीन में कार्य कर रहा हो, दूसरी में बाधा बन सकता है।
तुम इम्पाला कार से एक हिस्सा ले सकते हो जो उसमें ठीक कार्य कर रहा था। लेकिन यदि तुम इसे फोर्ड में लगा सकते,तो यह शायद समस्याएं खड़ी कर दे। एक हिस्सा एक ढांचे में कार्य करता है। हिस्सा ढांचे पर निर्भर करता है, संपर्ण पर। तम एक हिस्से मात्र का उपयोग नहीं कर सकते कहीं। और ये संश्लेषणकर्ता क्या करते हैं? वे एक ढांचे से एक हिस्सा उठा लेते हैं,दूसरा हिस्सा दूसरे ढांचे से, और वे सब घोल-मेल बना देते हैं। यदि तुम इन व्यक्तियों के पीछे चलते हो, तो तुम एक घोलमेल ही बन जाओगे। संश्लेषण करने की कोई जरूरत नहीं। सिर्फ तुम्हारा ढांचा खोज लेने का प्रयत्न करो; तुम्हारे ढांचे को अनुभव करो। और कहीं कोई जल्दी नहीं है। ध्यान से अपने ढांचे को अनुभव करो।
क्या तुम समर्पण कर सकते हो? प्रकृति को समर्पण कर सकते हो? तो कर देना समर्पण। यदि तुम अनुभव करते हो ऐसा असंभव है, कि तुम समर्पण नहीं कर सकते, तो निराश मत हो जाना क्योंकि एक दूसरा मार्ग है जो इस ढंग से समर्पण की मांग नहीं करता; जो तुम्हें तमाम अवसर देता है संघर्ष करने के। और दोनों एक ही बिंदु पर ले जाते हैं शिखर पर। जब तुम गौरीशंकर पर पहुंच चुके होते हो, धीरे-धीरे जैसे तुम शिखर के और और निकट पहुंचते हो, तुम देखोगे कि दूसरे भी पहंच रहे हैं जो कि विभिन्न मार्गों पर यात्रा कर रहे थे।