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तुम्हारी कब्र पर ही कुछ नया जन्म लेगा। इसीलिए मेरे आसपास एक अव्यवस्था है क्योंकि मैं हूं एक अव्यवस्था। और मैं अव्यवस्था का एक विधि की भांति उपयोग कर रहा हूं।
दूसरा प्रश्न:
ओम की साधना करते समय इसे मंत्र की तरह दोहराना अधिक अच्छा होता है या इसे आंतरिक नाद की भांति सुनने का प्रयत्न करना अच्छा है?
जाम- का मंत्र तीन अवस्थाओं में करना होता है। पहले तुम्हें इसे बहुत जोर से दोहराना
चाहिए। इसका अर्थ है यह शरीर से आना चाहिए। पहले शरीर से आना चाहिए क्योंकि शरीर ही है मुख्य दवार। और शरीर को पहले इसमें सराबोर होने दो,डूबने दो।
अत: इसे जोर से दोहराओ। मंदिर में चले जाओ या तुम्हारे कमरे में, या वहां कहीं जहां तुम जितना चाहो उतने जोर से इसे दोहरा सको। पूरे शरीर का उपयोग करो इसे दोहराने में; अनुभव करो जैसे कि हजारों लोग तुम्हें सुन रहे है माइक्रोफोन के बिना। और तुम्हें बहुत प्रबल होना पड़ता है ताकि सारा शरीर कंप पाये, इसके साथ हिल जाये। और कुछ महीनों के लिए, लगभग तीन महीनों के लिए तुम्हें किसी दूसरी चीज की फिक्र नहीं लेनी चाहिए। पहली अवस्था बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह दे देती है बुनियाद। जोर से जप करो, जैसे तुम्हारे शरीर का प्रत्येक अणु यही चिल्ला रहा है और इसी का जप कर रहा है।
तीन महीनों के बाद जब तुम अनुभव करते हो कि तुम्हारा शरीर संपूर्णतया आपूरित हो गया है, तब गहन तल पर यह शारीरिक कोशाणुओं में प्रवेश कर चुका होगा। और जब तुम इसे जोर से कहते हो, तो यह केवल मुंह से ही नहीं आता; सिर से लेकर पांव तक, सारा शरीर इसे दोहरा रहा होता है। यह घटता है। यदि तुम प्रतिदिन कम से कम एक घंटा निरंतर दोहराते हो इसे, तो तीन महीनों के भीतर तम अनभव करोगे कि मंह ही नहीं दोहरा रहा है इसे; सारा शरीर ही दोहरा रहा है ऐसा घटता है। ऐसा बहुत बार घटा है।
___यदि तुम वस्तुत: ईमानदारी से करते हो ऐसा, प्रामाणिक रूप से, और तुम स्वयं को धोखा नहीं दे रहे होते, यदि यह शिथिल नहीं होता बल्कि सौ डिग्री की घटना होता है, तब दूसरे भी सुन सकते है। वे अपने कान लगा सकते हैं तुम्हारे पांव की ओर, और जब तुम इसे जोर से कहते हो, वे इसे तुम्हारी हड्डियों से आता हुआ सुन लेंगे, क्योंकि सारा शरीर आत्मसात कर सकता है नाद को