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तुम कुछ नहीं करते, तो तुम पागल हो जाओगे, तुम विस्फोटित हो जाओगे। कामवासना सबसे आसान सेफ्टी वाल्व है। इसके द्वारा ऊर्जा प्रकृति में लौट चलती है।
यह छूता है क्योंकि ऊर्जा आती ही है प्रकृति से। तुम भोजन करते हो; यह है प्रकृति को खाना। तुम पानी पीते हो-यह प्रकृति को ही पिया जा रहा है। तुम धूपस्रान करते हो-यह है सूर्य का भोजन। निरंतर ही तुम प्रकृति को खा रहे हो और फिर तुम ऊर्जा बाहर फेंक देते हो प्रकृति में। स्की बात ही असंगत, व्यर्थ, अर्थशून्य लगती है। क्या उपयोग है इसका? तो तुम आलसी हो जाते हो।
___ ऊर्जा को ज्यादा ऊंचे जाना चाहिए। तुम्हें रूपांतरकार होना होगा। तुम्हारे द्वारा प्रकृति को दिव्य प्रकृति हो जाना चाहिए केवल तभी वहां होता है कोई अर्थ, कोई सार्थकता। तुम्हारे द्वारा विषय को मन बनना है; मन को बनना है उच्च मन। तुम्हारे द्वारा स्वभाव को पहुंचना चाहिए परम स्वभाव तक, निम्रतम को बनना होगा उच्चतम। केवल तभी वहां कोई महत्ता होती है-एक अनुभवित
महत्ता।
तब तुम्हारे जीवन का कोई गहरा, गहन अर्थ होता है। तुम व्यर्थ नहीं रहते; तुम मैली धूल की भांति नहीं होते। तुम एक ईश्वर होते हो। जब तुम्हारे स्वयं के द्वारा तुमने स्वभाव को परम स्वभाव तक पहुंचा दिया हो, तो तुम भगवान हो गये होते हो। पतंजलि हैं भगवान। तुम हो जाते हो गुरुओं के गुरु।
लेकिन साधारणतया कामुकता का, विषयासक्ति का अर्थ है ऊर्जा का एकत्रित हो जाना। और तुम्हें इसे बाहर फेंक देना होता है। तुम्हें मालूम नहीं कि क्या करना है इसका। पहले तुम इसे इकट्ठा कर लेते हो। पहले तुम जाते हो भोजन खोजने। बहुत प्रयास करते हो रोटी की जुगाडू करने में। फिर तुम रोटी पचा लेते हो और ऊर्जा निर्मित कर लेते हो। काम-ऊर्जा सबसे परिष्कृत ऊर्जा होती है तुम्हारे शरीर की, सर्वाधिक सूक्ष्म। और तुम बाहर फेंक देते हो इसे, और तब तुम फिर से चक्र में जा पड़ते
हो।
यह एक दुष्चक्र है। तुम बाहर फेंक देते हो ऊर्जा, और शरीर को आवश्यकता होती है ऊर्जा की। तुम खाते हो, जमा करते हो, फेंक देते हो। कैसे तुम अनुभव कर सकते हो कि तुम्हारे पास कोई अर्थ है? तुम उस लीक में पहुंच गये जान पड़ते हो जो कहीं नहीं ले जा रही। किस प्रकार मदद देगा यह ओम्? इस पर ध्यान करना कैसे मदद देगा? एक बार जब तुम ओम् का ध्यान करने लगते हो, दूसरे केंद्र क्रियान्वित होने लगते हैं।
जब ऊर्जा भीतर बहती है, तो यह एक वर्तुल बन जाती है। तब कामवासना का केंद्र ही एकमात्र ऐसा केंद्र नहीं होता जो क्रियान्वित होता है। तुम्हारा संपूर्ण शरीर एक वर्तुल हो जाता है। काम-केंद्र से ऊर्जा दूसरे केंद्र की ओर उठती है, तीसरे की ओर,चौथे की ओर, पांचवें की ओर, छठे की ओर, और फिर सातवें केंद्र की ओर। दोबारा यह छठे पर जाती, पांचवें पर, चौथे पर, फिर तीसरे