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तुम्हारी जिंदगी का बलिदान कर रहे होते हो नारों के कारण ही। झंडा, एक साधारण टुकड़ा कपड़े का, सम्मोहन द्वारा इतना ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। यह हमारा राष्ट्रीय झंडा है,अत: लाखों लोग मर सकते है इसके लिए। यदि दूसरे ग्रहों पर प्राणी है, और यदि उन्हें कभी पृथ्वी पर देखना होता हो, तो वे सोचते होंगे, 'ये लोग तो एकदम पागल हैं।' कपड़े के लिए-कपड़े के एक टुक्के के लिए-तुम मर सकते हो क्योंकि किसी ने हमारे झंडे का अपमान कर दिया है, और इसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता।
फिर धर्म तुम्हें उपदेश दिये चले जाते है कि तुम ईसाई हो, हिंदू हो, कि मुसलमान हो, कि यह हो और वह हो। वे तुम्हें अनुभव करवा देते कि तुम ईसाई हो, और फिर तुम धर्मयुद्ध में होते हो- 'उन दूसरे लोगों को मार दो जो ईसाई नहीं है। यह तुम्हारा कर्तव्य है।' वे तुम्हें ऐसी बेतुकी बातें सिखाते है, लेकिन तुम फिर भी उनमें विश्वास करते हो क्योंकि वे उन्हें कहे जाते हैं। एडॉल्फ हिटलर ने कहा है अपनी आत्मकथा 'मेन कैष्फ' में, कि यदि तुम निरंतर किसी झूठ को दोहराओ तो वह सच बन जाता है। और वह जानता है। कोई इस तरह नहीं जानता जिस तरह वह जानता है क्योंकि उसने स्वयं दोहराया झूठ को और एक चमत्कृत करने वाली घटना का निर्माण कर दिया।
__ प्रमाद का अर्थ है सम्मोहन की वह अवस्था जिसमें तुम चालाकी से चलाये जाते हो, खोये हुए जी रहे होते हो। तब असावधानी आयेगी ही क्योंकि तुम, तुम नहीं होते। तब तुम हर चीज बिना किसी सावधानी के करते हो। तुम जैसे ठोकर खाते चलते हो। चीजों के, व्यक्तियों के संबंध में, तुम निरंतर ठोकर खा रहे हो; तुम कहीं नहीं पहुंच रहे। तुम तो बस शराबी की भांति हो। लेकिन हर आदमी तुम्हारी भांति ही है, अत: तुम्हारे पास अवसर नहीं इसे अनुभव करने का कि तुम शराबी हो।
सचेत रहना। ओम् सचेत होने में किस प्रकार मदद करेगा तुम्हारी? यह तुम्हारा सम्मोहन गिरा देगा। वस्तुत: यदि तुम मात्र ओम् का जप किये जाओ बिना ध्यान किये, तो यह बात भी एक सम्मोहन हो जायेगी। मंत्र का साधारण जप करने में और पतंजलि के मार्ग में अंतर यही है। इसका जप करो और सचेत बने रही।
यदि तुम ओम् का जप करते हो और सचेत हुए रहते हो, तो यह ओम् और इसका जप सम्मोहन दूर करने की शक्ति बन जायेगा। यह तोड़ देगा उन तमाम सम्मोहनावस्थाओं को जो तुम्हारे चोरों ओर बनी रहती हैं; जो तुममें निर्मित होती रही हैं समाज द्वारा और चालाकियों से प्रभावित करने वालों द्वारा और राजनेताओं द्वारा। यह होगा सम्मोहन दूर करना।
एक बार ऐसा पूछा गया था अमरीका में, किसी ने पूछा था विवेकानंद से, 'साधारण सम्मोहन और तुम्हारे ओम् के जप में क्या अंतर है?' वे बोले,' ओम् का जप सम्मोहन को दूर करता है। यह विपरीत गियर में सरकना है।' प्रक्रिया वैसी ही मालूम पड़ती है, लेकिन गियर विपरीत होता है। और कैसे यह उल्टा हो जाता है? यदि तुम ध्यान भी कर रहे हो, तो धीरे-धीरे तुम इतने शांत हो जाते हो