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जिस घड़ी ऐसा तुम्हें घटता है, तो शिथिल निष्क्रियता तिरोहित हो चुकी होती है। अब तुम एक उतुंग ऊर्जा होते हो। अब तुम पर्वत शिखरों की ओर बढ़ सकते हो। अब तुम अनुभव करोगे कि बातचीत काफी नहीं है, कुछ करना ही है और ऊर्जा का स्तर इतना ऊंचा है कि अब कुछ किया जा सकता है। लोग मेरे पास आते हैं और वे पूछते है, क्या करना होगा? मैं तो सिर्फ उनकी ओर देखता हूं और मैं देखता हूं वे ऊर्जा बहा रहे हैं; वे कुछ नहीं कर सकते। पहली बात है इस बहाव को, रिसाव को गिरा देना । केवल तभी पूछो कि क्या किया जा सकता है, जब तुम्हारे पास ऊर्जा हो ।
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'संशय' संस्कृत में बहुत सारे शब्द हैं संशय के लिए अंग्रेजी में मात्र एक शब्द है डाउट तो समझने की कोशिश करना। मैं इसकी व्याख्या करूंगा। एक संदेह है जो उठता है आस्था के विरुद्ध । संस्कृत में इसे कहा जाता है 'शंका' यह एक युग्म है-आस्था के विरुद्ध शंका फिर एक संदेह है जो कहलाता है संशय अभी पतंजलि संशय के विषय में कह रहे हैं निश्चितता के दृढ़ता के विरुद्ध है। संशय अनिश्चितता से भरा व्यक्ति, वह व्यक्ति जो दृढ़ नहीं होता, संशय में होता है। यह आस्था के विरुद्ध नहीं क्योंकि आस्था है किसी में आस्था रखना। यह एक अलग ही बात है।
तो जो कुछ भी तुम करते हो, तुम निश्चित नहीं होते कि तुम इसे करना चाहते भी हो या नहीं। अनिश्चितता होती है। अनिश्चित मन के साथ तुम मार्ग पर प्रवेश नहीं कर सकते, पतंजलि के मार्ग पर तो बिलकुल ही नहीं तुम्हें निश्चित होना होता है, निर्णायक होना होता है तुम्हें निर्णय लेना ही पड़ता है। यह कठिन होता है क्योंकि तुम्हारा एक हिस्सा सदा नहीं कहे चला जाता है। तो कैसे लोगे निर्णय? इसके बारे में जितना सोच सकते हो सोच लेना इसे तुम जितना समय दे सकते हो देना। सारी संभावनाओं पर विचार कर लेना, सारे विकल्पों पर, और फिर निर्णय कर लेना । और
तब एक बार जब तुम निर्णय कर लेते हो समस्त संशय को गिरा देना ।
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इससे पहले इसका प्रयोग कर लो-संशय को लेकर तुम जो कुछ भी कर सकते हो कर लेना। सारी संभावनाओं पर विचार करना और फिर चुन लेना । निस्संदेह, यह बात कोई समग्र निर्णय नहीं बनने वाली है, आरंभ में ऐसा संभव नहीं होता। यह एक बहुमत का निर्णय होगा। तुम्हारे मन का बहुमत, अधिकांश कहेगा हां, एक बार तुम निर्णय ले लो, तो कभी संशय नहीं करना । संशय उठायेगा अपना सिर। तो तुम कह भर देना, 'मैने निर्णय कर लिया है।' बात खत्म हो गयी। यह समग्र निर्णय नहीं होता; सारे संशय फेंके नहीं गये लेकिन जो कुछ भी किया जा सकता था, तुमने कर लिया। जितना संभव हो सकता था तुमने इसके बारे में उतनी संपूर्णता से सोच लिया है और तुमने चुनाव कर लिया है।
एक बार चुन लेते हो तुम तो फिर संशय को कोई सहयोग मत देना, क्योंकि तुम्हारे सहयोग द्वारा संशय बना रहता है तुममें। तुम उसे ऊर्जा दिये चले जाते हो, और फिर-फिर तुम इसके बारे में सोचने लगते हो तब एक अनिश्चितता निर्मित हो जाती है अनिश्चितता एक बहुत बिगडी हुई