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हा है। उसने लगभग सिद्ध ही कर दिया है वैज्ञानिक रूप से कि जब रोग शरीर तक आ पहुंचता है, तो पहले यह आता है शरीर के चारों ओर के विदयुत-घेरे तक। एक खाली जगह बन जाती है।
शायद ऐसा हो कि तुम्हारे पेट में छह महीने बाद टयूमर होने वाला हो। बिलकुल अभी कोई आधार विद्यमान नहीं। कोई वैज्ञानिक तुम्हारे पेट में कोई गडबड़ी नहीं पा सकता। हर चीज ठीक होती है; कोई समस्या नहीं है। तुम पूरी तरह से जांच करवा सकते हो और ऐसा पाया जा सकता है कि तुम पूरी तरह से ठीक हो। लेकिन किरलियान शरीर का चित्र खींचता है बहुत सूक्ष्म प्लेट पर; उसने विकसित की है सवाधिक संवेदनशील सूक्ष्म प्लेटें। उस प्लेट पर केवल तुम्हारे शरीर का ही चित्र नहीं खिंचता,बल्कि शरीर के चारों ओर का प्रकाश-वर्तुल जिसे कि तुम हमेशा. साथ लिये रहते हो, इसका भी चित्र खिंच जाता है। उस प्रकाश वर्तुल में पेट के निकट, एक सूराख होगा। यह ठीकठीक तौर पर भौतिक शरीर में नहीं होता, लेकिन कोई चीज अस्त-व्यस्त हो जाती है। अब वह कहता है कि वह भविष्यवाणी कर सकता है कि छह महीने के भीतर वहां टयूम्बर हो जायेगा। और छह महीने पक्षात, जब टयूम्बर हो जाता है शरीर में, एक्सटरे बता देगा वही चित्र जो वह खींच चुका था छह महीने पहले। अत: किरलियान कहता है कि अभी तुम बीमार हुए भी नहीं होते, कि बीमारी की भविष्यवाणी की जा सकती है। और यदि दैहिक-ऊर्जा वृत ज्यादा संचारशील हो जाता है, तो यह दूर की जा सकती है इससे पहले कि यह कभी शरीर तक आये। वह नहीं जानता कि यह कैसे ठीक हो सकती है, लेकिन अकुपंक्चर जानता है, पतंजलि जानते हैं कि कैसे यह ठीक की जा सकती है।
पतंजलि के विचार से दैहिक-ऊर्जा वृत में, प्राण में, प्राण-ऊर्जा में, शरीर-विद्युत में किसी गड़बड़ी का होना ही रोग का होना है। इसलिए यह ठीक हो सकता है ओम दवारा। कभी अकेले बैठ जाओ किसी मंदिर में। किसी पुराने मंदिर में जाकर अनुभव करो जहां कोई नहीं जाता और बैठ जाओ वहां गुंम्बज के नीचे। वृत्ताकार गुम्बज ध्वनि को परावर्तित करने के लिए ही होता है। तो बैठ जाना उसी के नीचे, जोर से उच्चारण करना ओम का और ध्यान करना उस पर। ध्वनि को वापस परावर्तित होने देना और उसे बरसने देना स्वयं पर बरखा की भांति। और कुछ क्षणों बाद अकस्मात तुम पाओगे कि तुम्हारा सारा शरीर शांत, स्थिर, मौन हो रहा है; देह-ऊर्जा स्थिर हो रही
पहली बात है रोग। यदि तुम बीमार हो, तुम्हारे प्राणों में, तुम्हारी ऊर्जा में तो तुम ज्यादा दूर नहीं जा सकते। तुम्हारे चारों ओर बादल के समान लटकी हुई बीमारी के साथ, तुम ज्यादा दूर कैसे जा सकते हो? तुम ज्यादा गहरे आयामों में प्रवेश नहीं कर सकते। एक निश्रित स्वास्थ्य की जरूरत होती है। यह भारतीय शब्द 'स्वास्थ्य' बहुत अर्थपूर्ण है। इस शब्द का अर्थ है स्व में स्थित हो जाना, केन्द्रित हो जाना। अंग्रेजी शब्द 'हेल्थ' भी सुंदर है। यह आया है उसी शब्द से, उसी मूल से, जहां से'होली' या 'होल' आते हैं। जब तुम 'होल' अर्थात संपूर्ण होते हो तो तुम 'हेल्दी' होते हो और जब तुम 'होल' होते हो तो 'होली'अर्थात पवित्र भी होते हो।