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इस घटना को समझ लेना है। तुम्हारे चार मन होते है-वह परम मन जो भविष्य की संभावना है जिसके तुम केवल बीज लिये हुए हो। कुछ प्रस्कृटित नहीं हुआ; केवल बीज होते हैं, मात्र क्षमता होती है। फिर होता है चेतन मन-एक बहुत छोटा टुकड़ा जिसके द्वारा तुम विचार करते हो, सोचते हो, निर्णय करते हो, तर्क करते हो, संदेह करते हो, आस्था करते हो। यह चेतन मन गुरु के साथ संपर्क में होता है जिसे तुमने समर्पण नहीं किया है। तो जब भी यह संपर्क में होता है, गुरु संपर्क में होता है। अगर यह संपर्क में नही, तो गुरु सपर्क में नही। तुम एक विद्यार्थी हो, और तुमने गुरु को गुरु के रूप में नही धारण किया है। तुम अब भी एक शिक्षक के रूप में ही उसके बारे में सोचते हो।
शिक्षक और विद्यार्थी चेतन मन में अस्तित्व रखते हैं। कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि तुम खुले हुए नही हो। तुम्हारे दूसरे तीनों द्वार बन्द है। परम चेतना मात्र एक बीज होती है। तुम इसके द्वार नहीं खोल सकते।
उपचेतन जरा ही नीचे है चेतन से। वह द्वार खुलना संभव है यदि तुम प्रेम करो। यदि तुम यहाँ मेरे साथ हो केवल तुम्हारी तर्कणा के कारण, तो तुम्हारा चेतन द्वार खुला हुआ है। जब कभी तुम खोलते हो इसे, तो मैं वहा होता हूं। यदि तुम इसे नहीं खोलते, तो मैं बाहर होता है। मैं प्रवेश नहीं कर सकता। चेतन के नीचे ही उपचेतन है। यदि तुम मेरे प्रेम में हो, यदि यह मात्र शिक्षक और विद्याथीं का सबंध नहीं है बल्कि कुछ ज्यादा आत्मीयता का संबंध है, यदि यह प्रेम-जैसी घटना है, तो उपचेतनीय द्वार खुला होता है। बहुत बार चेतन द्वार तुम्हारे द्वारा बंद हो जायेगा। तुम मेरे विरुद्ध तर्क करोगे; कई बार तुम नकाराअत्म हो जाओगे; कई बार तुम मेरे विरुद्ध हो जाओगे। लेकिन वह बात महत्व नहीं रखती। प्रेम का उपचेतनीय द्वार खुला होता है, और मैं सदा रह सकता हूं तुम्हारे सपर्क में।
लेकिन वह भी एक संपूर्ण श्रेष्ठ द्वार नहीं है क्योंकि कई बार तुम मुझ से घृणा कर सकते हो। यदि तुम मुझे घृणा करते हो, तो तुमने वह द्वार भी बंद कर दिया है। प्रेम है वहां, लेकिन वह विपरीत बात घृणा भी वहा है। यह हमेशा होती है प्रेम के साथ। द्वितीय द्वार ज्यादा खुला होगा प्रथम से, क्योंकि पहला तो अपनी मनोदशा इतनी तेजी से बदलता है कि तुम जानते ही नहीं कि क्या घट सकता है। किसी भी क्षण यह बदल सकता है। एक क्षण पहले यह मौजूद था यहां अगले क्षण यह यहां नहीं होता। क्षण मात्र की घटना होती है।
प्रेम थोड़ी ज्यादा देर बना रहता है। यह भी अपनी भाव दशाएं बदलता है, लेकिन इसकी मनोदशाओ की थोड़ी ज्यादा लंबी तरंगे होती है। कई बार तुम मुझे घृणा करोगे। तीस दिनो में करीब आठ दिन ऐसे रहते होगे-कम से कम एक सप्ताह तो होता ही होगा-जिसके दौरान करोगे। लेकिन तीन सप्ताह के लिए तो वह द्वार खुला होता है। बुद्धि के साथ एक सप्ताह बहुत लंबा है। यह एक अनंतकाल होता है। बुद्धि के साथ एक क्षण तुम यहां होते हो, दूसरे क्षण तुम
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