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आवश्यकताओकेपार भीहोजायेगाक्योकितबशरीरकी आवश्यकता नहीं रहती है। शरीर वाहन है मन का। यदि मन नहीं रहा, शरीर की फिर और जरूरत नहीं रह सकती।
उसे ओम के रूप में जाना जाता है।
यह परमात्मा, यह सम्पूर्ण विकास, ओम् के रूप में जाना जाता है।
ओम् सर्वव्यापक नाद का प्रतीक है। स्वयं में तुम सुनते हो विचारों को, शब्दों को, लेकिन तुम्हारे अस्तित्व की ध्वनि को,नाद को कभी नहीं सुनते। जब कहीं कोई इच्छा नहीं होती, आवश्यकता नहीं होती, जब शरीर गिर चुका होता है, जब मन तिरोहित हो जाता है, तो क्या घटेगा? तब स्वयं ब्रह्मांड का वास्तविक नाद सुनाई पड़ता है, जो है ओम्।
और सारे संसार भर में इस ओम् का अनुभव किया गया है। मुसलमान, ईसाई, यहूदी इसे कहते हैं आमीन। यह है ओम्। जरथुस के अनुयायी, पारसी, इसे कहते हैं,' आहुरमाजदा '। वह अ और म है ओम्- आह्य' है अ से और माजदा है म से। यह होता है ओम्। उन्होंने इसे देवता बना लिया
__वह नाद सर्वव्यापी है। जब तुम थम जाते हो, तुम इसे सुन सकते हो। अभी तो तुम इतनी ज्यादा बातचीत कर रहे हो,भीतर इतने ज्यादा बडबडा रहे हो कि तुम इसे सुन नहीं सकते। यह है मौन ध्वनि। यह इतनी मौन होती है कि जब तक तुम पूरी तरह रुक नहीं जाते, तुम इसे सुन नहीं पाओगे। हिन्दुओं ने अपने देवताओं को प्रतीकाअक नाम से बुलाया है- ओम्। पतंजलि कहते हैं, 'वह
ओम् के रूप में जाना जाता है।' और यदि तुम गुरु को खोजना चाहते हो, गुरुओं के गुरु को, तो तुम्हें 'ओम्' की ध्वनि से अधिकाधिक तालमेल बैठाना होगा।
ओम को दोहराओ और इस पर ध्यान करो।
पतंजलि इतने वैतानिक ढंग से अवस्थित हैं कि वे एक भी आवश्यक शब्द नहीं छोड़ेंगे, और न ही वे कोई अतिरिक्त शब्द प्रयुक्त करेंगे। 'दोहराओ और ध्यान करो' - जब कभी वे कहते, 'ओम् को दोहराओ', वे सदा जोड़ देते 'ध्यान करो।' भेद को समझ लेना है। 'दोहराओ और ध्यान करो ओम
पर।'