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ऐसे लोग हैं जो कई दिनों का उपवास करेंगे और इच्छा करेंगे स्वर्ग की। उपवास करना आवश्यकता को काटना है और स्वर्ग की इच्छा करना इच्छाओं को बढ़ावा देना है! उनके पास तुम्हारी अपेक्षा कहीं ज्यादा समय है क्योंकि उन्हें स्वर्ग की सोचनी होती है। उनके पास बड़ी राशि होती है समय की। स्वर्ग शामिल होता है इसमें। तुम्हारा समय मृत्यु पर समाप्त हो जाता है। वे तुम्हें कहेंगे 'तुम पदार्थवादी हो।' वे अध्यात्मवादी हैं क्योंकि उनका समय और-और आगे बढ़ता जाता है। यह स्वर्ग को शामिल करता है-और केवल एक नहीं, सातों स्वर्ग। और मोक्ष भी, अंतिम मुक्ति-वह भी है उनकी सीमाओं के भीतर। उनके पास बड़ी मात्रा होती है समय की, और तुम हो पदार्थवादी क्योंकि तुम्हारा समय समाप्त होता है मृत्यु पर।
ध्यान रहे, आवश्यकताओं को गिराना आसान है। क्योंकि शरीर इतना मौन है, तुम इसे उयीडित कर सकते हो। और शरीर इतना अधिक लचीला होता है कि यदि तुम इसे सताते हो बहुत लम्बे समय के लिए तो यह तुम्हारे उत्यीड़न के, सताने के प्रति समायोजित हो जाता है। और यह गुंगा होता है। यह कुछ कह नहीं सकता। यदि तुम उपवास करते हो, तो दो या तीन दिन तक यह कहेगा, 'मैं भूखा हूं मैं भूखा हूं।' लेकिन तुम्हारा मन सोच रहा है स्वर्ग की बात, और भूखे रहे बिना तुम प्रवेश नहीं कर सकते। ऐसा शास्त्रों में लिखा है कि उपवास करो। तो तुम शरीर की सुनते नहीं। यह भी लिखा है शास्त्रों में, 'मत सुनो शरीर की,शरीर शत्रु है।'
और शरीर एक गूंगा जानवर है। तुम इसे सताये चले जा सकते हो। कुछ दिन यह कुछ नहीं कहेगा। यदि तुम लम्बा उपवास शुरू कर दो, अधिक से अधिक यह होगा कि पहले हफ्ते या पांच या छह दिन शरीर कुछ नहीं कहेगा। शरीर चुप हो जाता है क्योंकि कोई नहीं सुन रहा होता इसकी। फिर शरीर अपनी ही व्यवस्थाएं बिठाना शुरू कर देता है। इसके पास भोजन संग्रहित है नब्बे दिनों का। प्रत्येक स्वस्थ शरीर के पास नब्बे दिनों की चरबी का संग्रह होता है किसी आपात स्थिति के लिएउपवास करने के लिए नहीं।
कई बार शायद तुम किसी जंगल में खो जाओ, भोजन नहीं पा सको। कई बार अकाल पड़ सकता है और तुम भोजन नहीं पा सकोगे। शरीर के पास नब्बे दिनों का संग्रह होता है। यह स्वयं पर चलेगा। यह स्वयं को ही खाता है। और इसकी दो गियर की व्यवस्था होती है। साधारणतया यह भोजन की मांग करता है। यदि तुम भोजन प्रदान करते हो, तो वह भीतर का खजाना,संचय अक्षुण्ण बना रहता है। यदि तुम भोजन प्रदान नहीं करते तो दो या तीन दिन यह मांग किये ही जाता है। अगर तुम फिर भी प्रदान नहीं करते, तो यह गियर ही बदल देता' है। गियर बदल जाता है; तब यह स्वयं को ही खाने लगता है।
इसलिए उपवास करने से तुम प्रतिदिन एक किलो वजन खो देते हो। कहां जा रहा होता है यह वजन? यह वजन खो रहा होता है क्योंकि तुम अपनी चरबी खा रहे होते हो, तुम्हारा अपना मांस खा रहे होते हो। तुम नरमांस भक्षक बन गये हो, एक नरभक्षी। उपवास करना नरभक्षण है। नब्बे