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समय के बगैर इच्छा असम्भव होती है। समय भी असम्भव है इच्छा के बगैर। एक साथ वे एक घटना हैं। एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब कोई इच्छाविहीन हो जाता है, तो समयविहीन हो जाता है। भविष्य थम जाता है, अतीत बंद हो जाता है। केवल वर्तमान होता है वहां। जब इच्छाएं थम जाती हैं तो यह बात उस घड़ी की भांति होती है, जिसके कांटे निकालने के बाद, वह टिकटिक किये जाती है जरा उस घड़ी की कल्पना कर लेना जो बिना सुइयों के टिकटिक किये जाती है। तुम नहीं बता सकते कि कितना समय है।
बिना इच्छाओं के व्यक्ति वह घड़ी है जो बिना सुइयों के टिकटिक किये चला जा रहा है। ऐसी होती है बुद्ध की अवस्था वे शरीर में जीते हैं 'घड़ी' धड़कती जाती है क्योंकि शरीर की अपनी जैविक प्रक्रिया होती है जारी रहने को यह भूखा होगा और यह भोजन मांगेगा। यह प्यासा होगा और यह पेय की मांग करेगा। यह निद्रा अनुभव करेगा और यह सो जायेगा । शरीर की मांग होगी, अत: यह धड़के जा रहा है। लेकिन अन्तरतम अस्तित्व के पास समय नहीं घड़ी बिना कांटे की है।
लेकिन उस शरीर के कारण ही तुम अटके हुए होते हो, संसार में लंगर डाले हुए होते हो समय के संसार में तुम्हारे शरीर का वजन है, और उसी वजन के कारण गुरुत्वाकर्षण अब भी तुम पर कार्य करता है। जब देह छोड दी जाती है, जब कोई बुद्ध अपनी देह छोड़ता है, तब टिकटिक स्वयं बंद हो जाती है तब वह शुद्ध चेतना होता है कोई शरीर नहीं, कोई भूख नहीं और कोई तृप्ति नहीं शरीर नहीं तो प्यास नहीं, शरीर नहीं तो मांग नहीं।
इन दो शब्दों को खयाल में लेना इच्छा और आवश्यकता इच्छा होती है मन की आवश्यकता होती है शरीर की । इच्छा रहित, तुम बिना सुइयों की घड़ी हो। और जब आवश्यकता भी गिर जाती है, तब तुम समय के पार हो जाते हो यह होती है शाश्वतता समयातीत है शाश्वतता।
उदाहरण के लिए, यदि मैं घड़ी की ओर नहीं देखता, तो मैं नहीं जानता कि कितना समय है। समय जानते रहने के लिए, मुझे सारा दिन लगातार देखना पड़ता है। यदि मैंने पांच मिनट फ्टले देखा भी हो, तो मुझे फिर देखना होता है क्योंकि मैं एकदम ठीक समय नहीं जानता। क्योंकि भीतर कोई समय नहीं, केवल शरीर टिकटिक कर रहा है।
चेतना के पास कोई समय नहीं। समय निर्मित होता है जब चेतना की कोई इच्छा होती है। तब यह कुल निर्मित हो जाता है। अस्तित्व में कोई समय नहीं । यदि मनुष्य यहां इस धरती पर न होता, तो समय तुरन्त तिरोहित हो गया होता। वृक्ष टिकटिक करते, चट्टानें टिकटिक करतीं। सूर्य उदित होता और चन्द्रमा विकास पाता और चीजें जैसी हैं वैसी बनी रहतीं, लेकिन समय नहीं होता । क्योंकि समय वर्तमान के साथ नहीं आता यह आता है अतीत की स्मृति से और भविष्य की कल्पना से।