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जब तुम कहते हो कि बुद्ध समयातीत हैं, इसका अर्थ होता है कि वे कहीं विशेष स्थान में अस्तित्व नहीं रखते। और कैसे कोई अस्तित्व रख सकता है बिना किसी कहीं विशेष स्थान में अस्तित्व रखे हुए? वे विद्यमान रहते है; वे मात्र अस्तित्व रखते है। तुम दिखा नहीं सकते कि कहां; तुम नहीं बता सकते कि वे कहां होते हैं। इस अर्थ में वे कहीं नहीं हैं और एक अर्थ में वे सभी जगह है। मन समय में रहता है अत: उसके लिए समय के पार की किसी चीज को समझना बहत कठिन है। लेकिन जो बुद्ध की विधियों के पीछे चलता है और गुरु हो जाता है, कुल उसका एक सम्पर्क हो जाता है। बुद्ध अब भी उन लोगों को मार्ग दिखाते रहते है जो उनके मार्ग पर चलते हैं। जीसस अब तक उन लोगों का पथ-प्रदर्शन करते रहते हैं जो उनके मार्ग का अनुसरण करते हैं।
तिब्बत में कैलाश पर एक स्थान है, जहां प्रत्येक वर्ष जिस दिन बुद्ध ने संसार त्यागा, वैशाख की पूर्णिमा की रात्रि, पांच सौ गुरु एक साथ एकत्रित होते हैं। जब पांच सौ गुरु इस जगह हर वर्ष इकट्ठे होते हैं, तो उन्हें बुद्ध फिर से अवतरित होते हुए दिखते हैं। बुद्ध फिर से दृश्य रूप ग्रहण करते हैं।
यह एक पुराना अभिवचन है, और बुद्ध अब तक इसे पूरा करते हैं। पांच सौ गुरुओं को आना होता है वहां। एक भी कम नहीं होना चाहिए, क्योंकि तब यह बात सम्भव न होगी। ये पांच सौ गुरु बुद्ध के अवतरण के लिए मदद देते हैं वजन की भांति,लंगर की भांति। एक भी गुरु की कमी हो, तो घटना घटती ही नहीं-क्योंकि कई बार ऐसी अवस्था हई कि वहां पांच सौ गुरु मौजूद नहीं थे। तब उस वर्ष कोई सम्पर्क नहीं घटा, कोई प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं हुआ।
लेकिन तिब्बत में बहत गरु हैं, अत: यह कोई कठिनाई न थी। तिब्बत सर्वाधिक प्रज्ञावान देश है; अब तक यह ऐसा ही बना रहा। भविष्य में यह ऐसा नहीं रहेगा-माओ की कृपा के कारण! उसने उस सारे सूक्ष्म ढांचे को नष्ट कर दिया है जिसे तिब्बत ने निर्मित किया था। सारा देश एक ध्यान का मठ था। दूसरे देशों में आश्रमों का अस्तित्व होता है, लेकिन पूरा तिब्बत ही आश्रम था।
__ ऐसा नियम था कि हर परिवार में से एक व्यक्ति को संन्यस्त हो जाना होता और लामा होना होता। और ऐसा नियम बनाया गया था जिससे कि हर साल कम से कम पांच सौ लामा सदा मौजूद रहते। जब पांच सौ गुरु एक साथ कैलाश पर मध्यरात्रि को इकट्ठे होते बारह बजे, तो बुद्ध फिर प्रकट होते। वे समय और स्थान में उतर आते।
वे मार्ग दिखाते रहे हैं। प्रत्येक गुरु मार्ग-निर्देशन करता रहा है। एक बार तुम गुरु के निकट हो लेते हो-शिक्षक के निकट नहीं-तो तुम श्रद्धा रख सकते हो। चाहे तुम इस जीवन में सम्बोधि न भी पाओ, सूक्ष्म मार्ग-दर्शन सदा निरंतर रूप से रहेगा तुम्हारे लिए-चाहे तुम जानो भी नहीं कि तुम निर्देशित किये जा रहे हो। गुरजिएफ से सम्बन्धित बहुत लोग मेरे पास आ गये है। उन्हें आना ही है क्योंकि गरजिएफ उन्हें मेरी ओर फेंकता रहा है। कोई और है नहीं जिसकी तरफ गुरजिएफ उन्हें फेंक