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संभावना, एक प्रच्छन्न सम्भावना । इस बात को ध्यान में रख लेना है। अतः पतंजलि के लिए एक ईश्वर नहीं है; अनन्त ईश्वर हैं। सारा अस्तित्व भरा हुआ है ईश्वरों
पतंजलि की ईश्वर की अवधारणा को तुम एक बार समझ लेते हो, तो ईश्वर वस्तुतः पूजा करने के लिए ही नहीं होता। तुम्हें वही होना होता है; वही होती है एकमात्र पूजा । यदि तुम ईश्वर की पूजा किये चले जाते हो, तो यह बात मदद न देगी। वस्तुतः यह नासमझी होती है। पूजा, वास्तविक पूजा तो तुम्हारे स्वयं के ईश्वर हो जाने से होती है सारा प्रयास होना चाहिए तुम्हारी क्षमता को उस बिंदु तक ले आने का जहां यह वास्तविकता में विस्फोटित होती है, जहां बीज प्रक्तटित होता है और जो अनन्त काल से वहां छिपा हुआ था, वह प्रकट हो जाता है। तुम अव्यक्त परमात्मा हो। और अव्यक्त को व्यक्त के स्तर तक ले आने का प्रयास होता है - इसे अभिव्यक्ति के तल तक ले आने
का।
समय की सीमाओं के बाहर होने के कारण वह गुरुओं का गुरु है।
पतंजलि अपनी परमात्मा की अवधारणा के विषय में कह रहे है। जब कोई पूरी तरह खिल जाता है, जब किसी का अस्तित्व खिला हुआ कमल बन जाता है, तब उसे बहुत चीजें घटती हैं और उसके द्वारा बहुत चीजें अस्तित्व में घटनी शुरू हो जाती हैं। वह व्यक्ति एक विशाल शक्ति बन जाता है, अपरिसीम शक्ति; और उसके द्वारा बहुत ढंग से, अपने सच्चे रूप से ईश्वर होने में दूसरे मदद पाते हैं।
'समय की सीमाओं के बाहर होने के कारण वह गुरुओं का गुरु है।
तीन प्रकार के गुरु होते हैं। एक जो है वह गुरु नहीं होता, बल्कि वह शिक्षक होता है। शिक्षक वह है जो शिक्षा देता है, जो चीजों को जानने में लोगों की मदद करता है, स्वयं उन्हें समझे बिना । कई बार शिक्षक हजारों लोगों को आकर्षित कर सकते हैं केवल एक बात की आवश्यकता होती है कि उन्हें अच्छा शिक्षक होना चाहिए। हो सकता है उन्होंने स्वयं न जाना हो, लेकिन वे बतला सकते हैं, वे तर्क दे सकते हैं, वे उपदेश दे सकते हैं, और बहुत लोग उनके वचनों द्वारा उनके धर्मोपदेश द्वारा, उनके प्रवचनों द्वारा आकर्षित हो जाते हैं। निरंतर परमात्मा की बातें करते हुए शायद वे स्वयं को मूर्ख बना रहे है। हो सकता है धीरे-धीरे वे अनुभव करने लगते हों कि वे जानते हैं।
जब तुम किसी चीज की बात करते हो, तो सबसे बड़ा खतरा होता है कि शायद तुम यकीन ही करने लगो कि तुम जानते हो। शिक्षा देने का आकर्षण है क्योंकि यह बात बहुत अहंकार को भरती