________________ चांद एक सूक्ष्म कविता निर्मित करता है, एक सूक्ष्म आकर्षण। कोई इसे छूना चाहेगा और महसूस करना चाहेगा; कोई चांद पर जाना चाहेगा। लेकिन वैज्ञानिक का यह कारण नहीं है। वैज्ञानिक के लिए चांद एक चुनौती की भांति है। यह चांद साहस कैसे करता है कि वहां सतत एक चुनौती की भांति रहे! और आदमी यहां है और वह पहुंच नहीं सकता! उसे पहुंचना ही है। तुम गलत कारणों से आकर्षित हो सकते हो। दोष चांद का नहीं है, और न ही पतंजलि का कोई दोष है। लेकिन तुम्हें गलत कारणों से आकर्षित नहीं होना चाहिए। पतंजलि कठिन हैं सबसे अधिक कठिन–क्योंकि वे संपूर्ण मार्ग का विश्लेषण करते है। हर खंड बहुत कठिन प्रतीत होता है, लेकिन कठिनाई कोई आकर्षण नहीं बननी चाहिए-इस बात को खयाल में लेना। तुम पतंजलि के दद्वार से गुजर सकते हो। फिर भी तुम्हें कठिनाई के प्रेम में नहीं पड़ना है, बल्कि उस अंतर्दृष्टि के प्रेम में पड़ना है-वह प्रकाश जिसे पतंजलि मार्ग पर उतारते हैं। तम्हें प्रकाश के प्रेम में पड़ना है, मार्ग की कठिनाई के प्रेम में नहीं। वह एक गलत कारण होगा। जो आप हेराक्लतु, क्राइस्ट और झेन के बारे में कहते रहे हैं वह पतंजलि की तुलना में बाल-शिक्षा की भांति लगता है। इसलिए कृपा करके तुलना मत करना। तुलना भी अहंकार ही है। अस्तित्व में चीजें बगैर किसी तुलना के होती हैं। एक वृक्ष जो आकाश में चार सौ फीट तक उठ आया है, और एक बहुत छोटा-सा घास का फूल, दोनों एक ही हैं जहां तक कि अस्तित्व का संबंध है। लेकिन तुम जानते हो और तुम कहते हो, 'यह एक बड़ा वृक्ष है। और यह क्या है? मात्र एक साधारण घास का फूल!' तुम तुलना को बीच में ले आते हो, और जहां कहीं तलना आती है, वहां करूपता होती है। इसके द्वारा तुमने एक सुंदर घटना को नष्ट कर दिया है। वृक्ष अपने 'वृक्ष-पन' में महान था और घास अपने 'घास-पन' में महान थी। वृक्ष चार सौ फीट ऊंचा उठ आया होगा। इसके फूल उच्चतम आकाश में खिल सकते होंगे, और घास तो बस धरती से ही लिपट रही है। इसके फूल बहुत-बहुत छोटे होंगे। कोई जानता भी न होगा, जब वे खिलते और जब वे कुम्हला जाते हैं। लेकिन जब इस घास के फूल खिलते हैं, तो खिलने की घटना वही होती है, उत्सव वही होता है, और जरा भी भेद नहीं होता। इसे ध्यान में रखना। अस्तित्व में कोई तुलना नहीं होती। मन लाता है तुलना। यह कहता है, 'तुम ज्यादा सुंदर हो? 'क्या तुम इतना भर नहीं कह सकते, 'तुम सुंदर हो?' इस 'ज्यादा' को बीच में क्यों लाना? मुल्ला नसरुद्दीन एक सी के प्रेम में पड़ा हुआ था, और जैसी कि स्त्रियां होती है, जब मुल्ला नसरुद्दीन ने उसे चूमा तो उस सी ने पूछा, 'क्या तुम मुझे पहली स्त्री की हैसियत से चूम रहे