________________ वे बोधगम्य होंगे। क्योंकि वे क्रम निर्मित करते हैं। और तब वह छलांग की भांति नहीं दिखती अगर तुम्हारे पास सीढ़ियां हो। यह है वस्तुस्थति। हेराक्लतु तुम्हें अगाध खाई तक ले आते हैं और कहते हैं, 'लगाओ छलांग।' तुम नीचे देखते हो,तुम्हारा मन समझ ही नहीं सकता कि वे क्या कह रहे हैं। यह आत्मघाती जान पड़ता है। कोई सीढ़ियां नहीं हैं, और तुम पूछते हो, 'कैसे?' वे कहते हैं, 'कोई कैसे नहीं है। तुम बस छलांग लगा दो।' वहां कोई 'कैसे' हो कैसे हो सकता है? क्योंकि चरण नहीं हैं,सीढ़ियां नहीं है, 'कैसे' की व्याख्या की नहीं जा सकती। तुम छलांग ही लगा दो। वे कहते हैं, अगर तुम तैयार हो तो मैं तुम्हें धकेल सकता हूं पर विधियां नहीं है।' छलांग लगाने की कोई विधि है क्या? छलांग आकस्मिक है। विधियां विद्यमान रहती हैं,जब कोई चीज, कोई प्रक्रिया क्रमिक होती है। इसे असंभव पाकर तुम बिलकुल विपरीत दिशा में मुड़ते हो। पर स्वयं को सांत्वना देने को, कि तुम इतने दुर्बल व्यक्ति नहीं हो, तुम कहते हो, 'यह बच्चों के लिए है। यह तो काफी कठिन नहीं है।' यह तुम्हारे लिए नहीं। पतंजलि तुम्हें उसी अगाध खाई तक ले आते हैं, लेकिन उन्होंने सीढ़ियां बनायी हैं। वे कहते हैं, एक समय में एक सीढ़ी। यह पसंद आता है। तुम समझ सकते हो। गणित सीधा है, तुम एक चरण उठा सकते हो, फिर दूसरा। कोई छलांग नहीं है। पर खयाल रहे, देर-अबेर वे तुम्हें उस बिंदु तक ले जायेंगे जहां से तुम्हें छलांग लगानी होती है। उन्होंने सीढ़ियां निर्मित कर ली हैं,लेकिन वे तलहटी तक नहीं जाती, वे तो बस मध्य में हैं। और तलहटी इतनी दूर है कि तुम कह सकते हो कि यह एक अतल अगाध खाई है। तो कितनी सीढ़ियां तुम चलते हो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। खाई वैसी ही बनी रहती है। वे तुम्हें निन्यानबे चरणों द्वारा पहुचायेंगे और तुम बहुत प्रसन्न होते हो-जैसे कि तुमने खाई पार कर ली है, और अब तलहटी ज्यादा पास चली आ रही है! नहीं, तलहटी उतनी ही दूर बनी रहती है जितनी कि पहले थी। ये निन्यानबे चरण तो तुम्हारे मन को उलझाये रहते हैं, मात्र तुम्हें एक विधि, एक 'कैसे' देने को। फिर सौवें चरण पर वे कहते है, अब छलांग लगा दो।' और अगाध शुन्य वैसा ही बना रहता है; शून्य फैलाव वही है। कोई अंतर नहीं है क्योंकि खाई असीम है, परमात्मा असीम है। धीरे- धीरे उससे कैसे मिल सकते हो? लेकिन ये निन्यानबे चरण तुम्हें उलझाये रखेंगे। पतंजलि ज्यादा होशियार हैं। हेराक्लतु सीधे-सच्चे हैं। वे इतना ही कहते हैं, 'यह है चीज,खाई यहां है। लगा दो छलांग।' वे तुम्हें इसके लिए फुसलाते नहीं; वे तुम्हें बहकाते नहीं। वे केवल कहते हैं, 'यही है वास्तविकता। यदि तम छलांग लगाना चाहते हो, लगा दो छलांग; यदि तुम छलांग नहीं लगाना चाहते, तो चले जाओ।'