________________ प्रवचन 12 - अहंकार को दुःसाध्य का आकर्षण दिनांक 2 जनवरी; 1975 श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1-पतंजलि की तुलना में हेराक्लत्, क्राइस्ट और झेन बचकाने लगते हैं। हेराक्लत्, क्राइस्ट और झेन अंतिम चरण को निकट-सा बना देते हैं और पतंजलि प्रथम चरण को भी असंभव बनाते हैं। ऐसा क्यों लगता है? 2-संदेह और विश्वास के बीच झूलने वाला हमारा मन इन दो छोरों से पार उठकर श्रद्धा तक कैसे पहुंचे? पहला प्रश्न: आप जो हेराक्लतु क्राइस्ट और झेन के विषय में कहते रहे हैं वह पतंजलि की तुलना में शिशुवत लगता है। राक्लतु क्राइस्ट और झेन अंतिम चरण को निकट-सा बना देते हैं पतंजलि पहले चरण को भी लगभग असंभव दिखता बना देते हैं। ऐसा लगता है कि जितना कार्य करना है उसे पश्चिम के लोगों ने मुश्किल से ही स्पष्ट अनुभव करना शुरू किया है। लाओत्स का कहना है, 'अगर ताओ पर हंसा नहीं जा सकता तो वह ताओ नहीं होता।'