________________ होते, वे एक ही हैं। दोनों एकलक्षित हैं। बाजार में वे वस्तुओं को, विषयों को देख रहे होते है। मठों में वे अपने को देख रहे होते हैं। स्मृति न तो बाजार में है, न ही संसार के बाहर वाले मठों में। स्मृति एक घटना है आत्मस्मरण की, जब 'रू' और 'पर'दोनों एक साथ चैतन्य में होते हैं। यह संसार की सवर्तधक कठिन बात है। अगर तुम इसे क्षण भर को, एक आशिक क्षण को भी प्राप्त कर सको तो तुम्हें तुरंत सतोरी की झलक प्राप्त होगी। तत्काल तुम शरीर से कहीं और बाहर जा चुके होओगे। इसे आजमाना। लेकिन ध्यान रहे, अगर तुममें श्रद्धा नहीं है तो यह एक तनाव बन जायेगी। ये उसकी समस्याएं हैं। यह ऐसा तनाव बन सकती है कि तुम पागल बन सकते हो, क्योंकि यह एक बहुत तनाव की स्थिति होती है। इसलिए 'स्व' और 'पर',भीतरी और बाहरी दोनों को याद रखना कठिन होता है। दोनों को याद रखना बहुत-बहुत दुःसाध्य है। अगर श्रद्धा होती है तो वह तनाव को कम कर देगी क्योंकि श्रद्धा है प्रेम। यह तुम्हें शांत करेगी, यह तुम्हारे चारों ओर एक संतोषदायिनी शक्ति होगी। वरना तनाव इतना ज्यादा हो सकता है, कि तुम सो न पाओगे। तुम किसी क्षण शांत न हो पाओगे क्योंकि यह एक निरंतर उलझन बनी रहेगी। और तुम निरंतर एक चिंता में ही रहोगे। इसीलिए तुम एक बात कर सकते हो, ऐसा आसान होता है कि तुम एक एकांत मठ में जा सकते हो, आंखें बंद कर सकते हो, स्वयं का स्मरण कर सकते हो और संसार को भूल सकते हो। लेकिन कर क्या रहे हो तुम? तुम तो बस, सारी प्रक्रिया को उल्टा भर रहे हो, और कुछ नहीं कर रहे। कोई परिवर्तन नहीं। या, तुम इन धर्मस्थानों को भूल सकते हो और भूल सकते हो इन मंदिरों को और इन गुरुओं को और बने रह सकते हो संसार में, आनंद उठा सकते हो संसार का। वह भी आसान है। कठिन बात तो है दोनों के प्रति सचेत होना। और जब तुम दोनों के प्रति सचेत होते हो और साथ-साथ ऊर्जा जागरूक होती है, संपूर्णतया ही विपरीत दिशाओं को लक्षित होती हुई, तो तनाव होता है, इंद्रियातीत अनुभव होता है। तुम मात्र तीसरे बन जाते हो। तुम दोनों के साक्षी हो जाते हो। और जब तीसरा प्रवेश करता है, पहले तुम विषय वस्तु को और स्वयं को देखने की कोशिश करते हो। लेकिन अगर तुम दोनों को देखने की कोशिश करते हो तो बाद में, थोड़ी देर में तुम अनुभव करते हो तुम्हारे भीतर कुछ घट रहा है क्योंकि तुम 'तीसरे' बन रहे हो। तुम दोनों के बीच में हो- 'पर' और 'स्व' के बीच। अब तुम न तो विषय हो और न ही विषयी। 'श्रद्धा, प्रयास, स्मृति, एकाग्रता और विवेक द्वारा उपलब्ध होते हैं।' श्रद्धा है आस्था। वीर्य है समग्र प्रतिबद्धता, समग्र प्रयास। समग्र ऊर्जा ले आनी होती है, तुम्हारी सारी शक्ति लगानी पड़ती है। यदि तुम वास्तव में ही सत्य के खोजी हो, तो तुम कोई दूसरी चीज नहीं खोज सकते। इसमें संपूर्णत: डूबना होता है। तुम इसे पार्ट-टाइम जॉब नहीं बना सकते और न ही कह सकते, 'सुबह किसी