________________ कुतर्क वाला व्यक्ति कांटे गिनता है; तब फूल अवास्तविक बन जाते हैं। वितर्कयुक्त व्यक्ति फूल गिनता है; तब कांटे अवास्तविक हो जाते हैं। इसलिए पतंजलि कहते हैं कि वितर्क प्रथम तत्व है। इसके दवारा आनंद संभव है। वितर्क दवारा व्यक्ति को स्वगोंपलब्धि होती है। व्यक्ति अपना ही स्वर्ग चारों ओर निर्मित कर लेता है। तुम्हारा दृष्टिकोण निर्णायक है। जो कुछ तुम चारों ओर पाते हो, वह तुम्हारा अपना निर्माण है-रूर्ग या नरक। और पतंजलि कहते हैं कि तुम तर्क और बुद्धि के पार जा सकते हो, केवल विधायक तर्क के दवारा। निषेधात्मक तर्क के दवारा तुम कभी पार नहीं जा सकते, क्योंकि जितना अधिक तुम नकारते हो, उतना ज्यादा तुम उदास पाते हो चीजों को। अगर तुम 'नहीं 'कहते हो और त्यागते हो, धीरे- धीरे तुम भीतर एक सतत नकार बन जाते हो, एक अंधियारी रात। तो फूल नहीं, केवल कांटे ही तुममें विकसित हो सकते हैं। तुम एक मरुस्थल होते हो। जब तुम हां कहते हो, तब तुम ज्यादा और ज्यादा चीजें पाते हो हां कहने के लिए। जब तुम कहते हो हां, तुम 'ही कहने वाले' बन जाते हो। जीवन का स्वीकार हुआ। और तुम्हारी 'हां' द्वारा तुम वह सब आत्मसात कर लेते हो जो शुभ है, सुंदर है;वह सब जो सत्य है।'हां' तुम्हारे भीतर एक द्वार बन जाता है भगवत्ता के प्रवेश करने का; 'नहीं' एक बंद द्वार बनता है। तुम्हारे बंद द्वार सहित, तुम एक नरक होते हो। तुम्हारे खुले द्वार सहित, सारे खुले द्वार-दरवाजों सहित, अस्तित्व तुम्हारे भीतर बह आता है। तुम ताजे, यौवनमय, जीवंत होते हो, तुम एक फूल बन जाते हो। वितर्क, विचार, आनंद-पतंजलि कहते हैं अगर तुम वितर्क के साथ मेल बनाते हो-विधायक तर्क के साथ, तब तुम एक विचारक हो सकते हो; उससे पहले हरगिज नहीं। तब विचारणा उदित होती है। उनके लिए विचारणा का बिलकुल अलग ही अर्थ है। तुम भी सोचते हो कि तुम विचार करते हो। पतंजलि सहमत नहीं होंगे। वे कहते हैं तुम्हारे पास विचार हैं, पर विचारणा नहीं। इसलिए मैं कहता हूं कि कठिन है उन्हें अनुवादित करना। __ वे कहते हैं, तुम्हारे पास विचार हैं, भागते-दौड़ते विचार हैं भीड़ की तरह, लेकिन कोई विचारणा नहीं है। तुम्हारे दो विचारों के बीच कोई अंतर्धारा नहीं है। वे उखड़ी हुई चीजें हैं; कोई अंतर्व्यवस्था नहीं है। तम्हारा सोचना एक अस्त-व्यस्तता है। यह सव्यवस्था नहीं है; इसमें कोई आंतरिक अनुशासन नहीं है। जैसे एक माला होती है, वहां मनके हैं, और एक-दूसरे से बंधे हैं अदृश्य धागे दवारा, जो उनमें से गुजर रहा है। विचार मनके हैं; विचारणा धागा है। तुम्हारे पास मनके हैं बहुत सारे, वस्तुत: जितने तुम्हें चाहिए उससे ज्यादा, लेकिन कोई आंतरिक धना, कोई अंतसूत्र उनमें व्याप्त नहीं है। उस अंतर्रात्र को पतंजलि कहते हैं-विचार। तुम्हारे पास विचार हैं, पर कोई विचारणा नहीं। और अगर ऐसा ही होता चला जाता है तो तुम पागल हो जाओगे। पागल आदमी वह आदमी है जिसके पास लाखों