________________ बुद्ध फिर भी एक निश्चित अनुशासन पर चल रहे थे। वे एक सुनिश्चित ढंग से चलते, वे एक निश्चित ढंग से बैठते, वे जागरूक हुए रहते, वे निश्चित भोज्य पदार्थ ही खाते, वे निश्चित ढंग से व्यवहार करते-हर चीज अनुशासनपूर्ण जान पड़ती। तो पूर्णकाश्यप ने कहा, 'आप सखुद्ध हो चुके हैं, किंतु हम अनुभव करते हैं कि तब भी आप एक सुनिश्चित अनुशासन को रखे हुए हैं।' बुद्ध बोले, 'यह इतना ज्यादा पका और गहरा हो चुका है कि अब मैं इसके पीछे नहीं चल रहा हूं। यह मेरे पीछे चल रहा है। यह एक छाया बन चुका है। मुझे जरूरत नहीं इसके बारे में सोचने की। वह है यहां। सदा है। यह छाया बन चुका है।' अत: अन्त है आरंभ ही में, और आरंभ भी बना हुआ होगा अंत में। ये दो चीजें नहीं हैं, बल्कि दो छोर हैं एक ही घटना के। आज इतना ही प्रवचन 11 - समाधि का अर्थ दिनांक 1 जनवरी, 1975 श्री रजनीश आश्रम,पूना। योगसूत्र: वितर्कविचारानदास्मितानगमात्सप्रज्ञातः।। 17 / / सप्रज्ञातसमाधि वहसमाधिहैजोवितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता के भावसेयुक्तहोतीहै। विरामप्रत्ययाथ्यासपूर्व: संस्कारशेषोऽन्य:// 18||