________________ यह एक रेडियो जैसा ही है जो शायद यही कमरे में हो लेकिन कार्य न कर रहा हो। कुछ तार गलत ढंग से जुड़े हुए हैं या टूटे हुए है या कोई खूटी खो गयी है। रेडियो है यहां, रेडियो की तंरगे निरंतर गुजर रही हैं, लेकिन रेडियो के सुरों में ताल में लन ही बैठा है। वह ग्रहण शील नहीं बन सकता। तम तो बस एक रेडियो जैसे हो, जो उस हालत मे नही है कि कार्य कर सके। बहत सारी चीजें खोयी हुई है, बहुत चीजें गलत ढंग से जुड़ी हुई है।'अनुशासन' का अर्थ है, तुम्हारे रेडियो को क्रियाशील, ग्रहणशील, समस्वरित बनाना। दिव्य तरंगें तुम्हारे चारों ओर है। एक बार तुम स्वरसंगति पा जाते हो, तो वे अभिव्यक्त हो जाती हैं। वे व्यक्त हो सकती हैं तुम्हारे द्वारा ही। और जब तक वे तुम्हारे द्वारा व्यक्त नहीं होती, तुम जान नही सकते उन्हें। हो सकता है वे मेरे द्वारा व्यक्त हो चुकी हों, वे कृष्णमूर्ति या किसी और के द्वारा व्यक्त हो चुकी हों,लेकिन यह बात तुम्हारा रूपांतरण नहीं बन सकती। वस्तुत: तुम नहीं जान सकते कि कृष्णमूर्ति के भीतर, गुरजिएफ के भीतर क्या घट रहा हैउनके भीतर क्या घट रहा है,किस ढंग की समस्वरता घट रही है, उनका यंत्र किस तरह इतना सक्ष्म हो गया है कि यह ब्रह्मांड का सूक्ष्मतम संदेश पकड़ लेता है, कि किस प्रकार अस्तित्व स्वयं को इसके द्वारा प्रकट करने लगता है! अनुशासन का अर्थ है, तुम्हारे भीतर की यंत्र-संरचना को परिवर्तित करना; इसे समस्वरित करना; इसे एक उपयुक्त साज बना देना ताकि यह अभिव्यक्तिपूर्ण और ग्रहणशील हो सके। कभीकभी यह बिना अनुशासन के सयोगवशात भी घट सकता है। रेडियो मेज से गिर सकता है। मात्र गिरने से, केवल संयोग दवारा, कुछ तार शायद जुड़ जायें या अलग हो जायें। मात्र गिरने से ही रेडियो किसी स्टेशन से जुड़ सकता है। तब यह कुछ व्यक्त करने लगेगा, लेकिन यह तो एक अंधव्यवस्था होगी। यह बहुत बार घट चुका है। कई बार संयोग द्वारा लोग दिव्यता को जान गये और भगवता को अनुभव कर लिया। लेकिन फिर वे पागल हो जाते हैं क्योंकि वे अनुशासित नहीं होते इतनी बड़ी घटना को धारण करने के लिए। वे तैयार नहीं होते हैं। वे इतने छोटे हैं और इतना विशाल महासागर उन पर टूट पड़ता है। ऐसा घटित हुआ है। सूफी दर्शन में ऐसे व्यक्तियों को प्रभु के मतवाले कहते हैं। वे उन्हें कहते हैं 'मस्त।