________________ और अगर कुछ वास्तव में घटित हुआ हो, अगर पत्नी या पति वास्तव में ही परिवर्तित हो गये हों, तब यह संबंध जारी नहीं रह सकता। यह असंभव है जब तक कि दूसरा भी बदलने को राजी न हो। किंतु स्वयं को बदलने के लिए राजी हो पाना बहुत कठिन है क्योंकि यह अहंकार पर चोट करता है। इसका अर्थ होता है कि जो कुछ तुम हो, गलत हो। परिवर्तन की आवश्यकता है। इसलिए कभी कोई अनुभव नहीं करता कि उसे परिवर्तित होना है। हर कोई अनुभव करता है, 'सारे संसार को बदलना है,सिर्फ मुझे नहीं। मैं ठीक हूं बिलकुल ठीक, और संसार गलत है क्योंकि यह मेरे अनुसार काम नहीं करता। 'समस्त बुद्ध–पुरुषों की सारी चेष्टा बहुत सीधी है-यह है तुम्हें जागरूक बनाने के लिए कि जहां कहीं तुम हो, जो कुछ तुम हो, तुम हो कारण। प्रश्न-2 क्यों छत लोग योग मार्ग पर एक दृष्टिकोण अपना लेते है-युद्ध का, संघर्ष का कड़े नियम पालने के प्रति अतिचितित होने का, और योदधा जैसे होने का वस्तुत: एक योगी होने के लिए क्या यह आवश्यक है है? यह नितांत अनावश्यक है। और न केवल अनावश्यक है, बल्कि योग के मार्ग पर यह हर प्रकार की बाधाएं निर्मित करता है। योद्धा जैसा दृष्टिकोण सबसे बड़ी अड़चन है जो संभव है क्योंकि कोई है नहीं जिससे लड़ा जाये। भीतर तुम अकेले हो। यदि तुम लड़ने लगते हो, तो तुम स्वयं को ही खंडित कर रहे हो। यह सबसे बड़ी बीमारी है-बंट जाना, फिल्जाएफ्रेनिक होना। और सारा का सारा संघर्ष निरर्थक है क्योंकि यह कहीं ले जाने वाला नहीं है। कोई नहीं जीत सकता। तुम दोनों तरफ हो। ज्यादा से ज्यादा तुम खेल सकते हो। तुम खेल सकते हो आख-मिचौनी का खेल। कई बार 'अ' नामक हिस्सा जीतता है, कई बार 'ब' नामक हिस्सा जीतता है, फिर दोबारा हिस्सा 'अ', फिर दोबारा हिस्सा 'ब'। इस तरीके से तुम चल सकते हो। कई बार वह जीतता है जिसे तुम अच्छा कहते हो। लेकिन बुरे के साथ लड़ते हुए, बुरे को जीतते हुए, अच्छा हिस्सा थक-हार जाता है और बुरा हिस्सा ऊर्जा एकत्रित कर लेता है। कभी न कभी वह बुरा हिस्सा उठेगा, और यह और आगे चल सकता है अनंत तक। तिन | योद्धा जैसा भाव घटता क्यों है? अधिकतर लोग लड़ने क्यों लगते है? जिस क्षण वे रूपांतरण की सोचते है, वे लड़ने लगते हैं। क्यों? क्योंकि वे केवल एक ढंग जानते है जीतने काऔर वह है लड़ने का। जो संसार बाहर है उसमें, बाह्य संसार में एक तरीका है विजयी होने का और