________________ रहना चाहिए। उसने उनसे कहा था, भावुक तौर पर अभिभूत मत होना। अगर तुम अभिभूत होते हो, तब तुम्हारी सलाह निरर्थक होती है। बस, दर्शक बने रहना। यह बात कर भी लगती है। कोई चीख रहा हो, रो रहा हो. और तुम भी महसूस करते हो क्योंकि तुम एक मानव-प्राणी हो। पर फ्रायड ने कहा था,' अगर तुम मनोवैज्ञानिक की भांति, मनोविश्लेषक की भांति कार्य कर रहे हो, तो तुम्हें असम्मिलित बने रहना चाहिए। तुम्हें व्यक्ति की ओर ऐसे देखना चाहिए जैसे कि वह कोई समस्या ही है। उसकी ओर ऐसे मत देखो जैसे कि वह मानव-प्राणी है; नहीं तो तुम तुरंत अंतर्ग्रस्त हो जाते हो। तुम भाग लेने वाले बन जाते हो और फिर तुम सलाह नहीं दे सकते। तब जो कुछ भी तुम कहते हो वह पक्षपातपूर्ण होगा। तब तुम उसके बाहर नहीं होते हो।' यह कठिन है, बहुत कठिन। अत: फ्रायडवादी बहुत तरह से इसका प्रयत्न करते रहे है। फ्रायडवादी मनोविश्लेषक सीधे तौर पर रोगी के सामने नहीं होगा क्योंकि जब तुम किसी व्यक्ति के सम्मुख होते हो तो असम्मिलित रहना कठिन होता है। अगर तुम किसी व्यक्ति की आंखों में झांकते हो, तो तुम उसमें प्रवेश करते हो। इसलिए फ्रायडियन मनोविश्लेषक पर्दे के पीछे बैठता है, और रोगी कोच पर लेटा रहता है। यह भी बहुत अर्थपूर्ण है। फ्रायड समझ पाया था कि अगर कोई आदमी लेटा हुआ होता है और तुम बैठे या खड़े हुए होते हो, उसे नहीं देख रहे होते, तो सम्मिलित होने की कम संभावना होती है। क्यों? एक लेटा हुआ व्यक्ति आसानी से कोई समस्या बन जाता है, जिस पर कि कार्य करना होता है जैसे कि वह सर्जन की मेज पर हो। तुम उसकी चीरफाड़ कर सकते हो। साधारणतया, ऐसा कभी होता नहीं। अगर तुम किसी व्यक्ति से मिलने जाते हो, तो वह तुमसे बात नहीं करेगा जबकि लेटा हुआ हो और तुम बैठे हुए हो-जब तक कि वह रोगी न हो, जब तक कि वह अस्पताल ही में न हो। तो फ्रायड के मनोविश्लेषण में रोगी को कोच पर लेटे रहना चाहिए। तब मनोविश्लेषक को लगता रहता है कि वह आदमी मरीज है, बीमार है। उसकी सहायता करनी ही है। वह वास्तव में कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि एक समस्या है, अत: उसके साथ सम्मिलित होने की किसी को जरूरत नहीं। और मनोविश्लेषक को व्यक्ति के सम्मुख नहीं होना चाहिए। उसे मरीज का सामना नहीं करना चाहिए। पर्दे के पीछे छिपे हुए वह उसे सुनेगा। फ्रायड कहता है कि रोगी को छूना मत, क्योंकि अगर तुम उसे छूते हो, अगर तुम रोगी का हाथ अपने हाथ में लेते हो, तो संभावना है कि तुम उसमें उलझ जाओ। यह सावधानी लेनी पड़ती थी क्योंकि मनसविद बुद्धपुरुष नहीं होते हैं। पर यदि तुम बुद्ध के पास जाते तो तुम्हें लेटने की कोई जरूरत नहीं। तुम्हें पर्दे के पीछे छिपने की कोई जरूरत नहीं। बुद्ध