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परिवर्तित हो सकता है और धर्म सोचता है कि केवल व्यक्ति परिवर्तित हो सकते है। समाज संपूर्ण रूप में नहीं बदला जा सकता, क्योंकि समाज की कोई आत्मा नहीं होती। वह रूपांतरित नहीं हो सकता। वस्तुत: समाज नहीं है, केवल व्यक्ति हैं।
साम्यवाद का कहना है व्यक्ति नहीं है, केवल समाज है। साम्यवाद और धर्म नितांत विरोधात्मक हैं एक दूसरे के लिए। और यही है विरोध-यदि साम्यवाद चलन में आता है, तो वैयक्तिक स्वतंत्रता विलीन हो जाती है। तब केवल समाज विदयमान रहता है। व्यक्ति को वास्तव में वहां होने नहीं दिया जाता। वह केवल एक हिस्से की भांति बना रह सकता है, पहिये में केवल एक आरे की तरह। उसे एक निजता नहीं होने दिया जा सकता।
मैंने एक घटना सुनी है। एक आदमी मास्को पुलिस स्टेशन में गया और शिकायत दर्ज करवायी कि उसका तोता गुम हो गया है। जो ऐसी बातों से संबंध रखता था उस क्लर्क की ओर उसे भेज दिया गया। क्लर्क ने रपट लिखी। फिर उसने उस आदमी से पूछा, 'क्या तोता बोलता भी है? क्या वह बातें करता है?' वह आदमी डर गया। वह थोड़ी मुसीबत में पड़ गया; बेचैन हो गया। वह आदमी कहने लगा, 'हां, वह बोलता है। लेकिन जो कुछ राजनीतिक विचार वह जाहिर करता है, वह राजनीतिक विचार सच पूछिए तो उसके अपने हैं।' यह व्यक्ति भयभीत था क्योंकि तोते के राजनीतिक विचार उसके मालिक के ही होंगे। एक तोता तो बस नकल करता है।
साम्यवाद के साथ वैयक्तिकता नहीं आने दी जाती। तुम व्यक्तिगत मत नहीं रख सकते क्योंकि विचार केवल राज्य का विषय होते हैं, समूह-मन का। और समूह-मन निम्रतम संभव चीज है। व्यक्ति शिखर तक पहुंच सकते हैं, लेकिन कोई समह कभी बदध जैसा या जीसस जैसा नहीं हआ। केवल व्यक्ति शिखर बन गये हैं।
बुद्ध ने अपने जीवन भर का अनुभव महाकाश्यप को दिया था क्योंकि दूसरा कोई रास्ता नहीं है। वह किसी समूह को नहीं दिया जा सकता। ऐसा नहीं हो सकता, यह बिलकुल असंभव है।
द, अंतर्मिलन केवल दो व्यक्तियों के बीच हो सकता है। यह वैयक्तिक होता है, गहन वैयक्तिक आस्था। समूह व्यक्तित्वहीन होता है। और खयाल रहे, समूह बहुत सारी चीजें कर सकता है। पागलपन समूह के लिए संभव है, लेकिन बुद्धत्व संभव नहीं। समूह पागल हो सकता है, लेकिन समूह प्रबुद्ध नहीं हो सकता।
घटना जितनी ज्यादा निम्न हो, उतना ही ज्यादा समूह उसमें भाग ले सकता है। इसलिए सारे बड़े पाप समूहों द्वारा किये गये हैं, व्यक्ति द्वारा नहीं। एक व्यक्ति कुछ लोगों का खून कर सकता है, लेकिन एक व्यक्ति 'फासीज्म' नहीं बन सकता। वह लाखों का खून नहीं कर सकता।'फासीज्म' लाखों का खून कर सकता है और अच्छे इरादों के साथ।