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पश्चिम के खोजी मेरे पास आते है। वे कहते हैं, जो कुछ भी आप कहते हैं हम करेंगे। और वे उस पर चलते है। ठीक उस तरह, जैसा कहा जाता है। लेकिन वे उस पर कार्य करते हैं जैसे कि वे बस किसी भी दूसरी जानकारी पर कार्य कर रहे हों-किसी तरकीब पर। वे उसके प्रेम में नहीं पड़े हैं। वे उसे लेकर पागल नहीं हुए।
वे उसमें खोये नहीं। वे योजनापूर्ण चालाक बने रहते हैं।
वे नियंत्रण में बने रहते हैं। और वे तरकीब को चालाकी से काम में लाये चले जाते हैं, जैसे कि वे किसी मशीनी-यंत्र को चलाते होंगे। यह ऐसा है जैसे कि तुम बटन दबा सकते हो और पंखा चलने लगता है। बटन के लिए या पंखे के लिए किसी श्रद्धापूर्ण निष्ठा की आवश्यकता नहीं है। और तुम जीवन में हर चीज इसी तरह करते हो, लेकिन अभ्यास इस तरह से नहीं किया जा सकता है। तुम्हें अपने अभ्यास से बहुत गहरे स्वप्न में संबंधित होना पड़ता है। तुम्हारा अभ्यास, जिसमें कि तुम दवितीय बन जाते हो, और वह अभ्यास प्रथम बन जाता है; जैसे कि तुम प्रतिछाया बन जाते हो, और अभ्यास आत्मा बन जाता है; जैसे कि जो अभ्यास कर रहा है वह तुम नहीं हो। अभ्यास हो रहा है अपने से ही, और तुम तो उसके हिस्से मात्र हो, उसके साथ प्रदोलित हो रहे हो, तब ऐसा हो सकता है कि ज्यादा समय की आवश्यकता न रहेगी।
गहरी श्रद्धा के साथ परिणाम तुरंत पीछे-पीछे चले आ सकते हैं। श्रद्धा की एक घड़ी में तुम अतीत की कई जिंदगियों को मिटा सकते हो। श्रद्धा के गहरे क्षण में तुम अतीत से पूर्णतया मुक्त हो सकते हो।
श्रद्धा से भरी निष्ठा का क्या अर्थ होता है इसे स्पष्ट करना कठिन है। मित्रता होती है, प्रेम होता है। और एक भिन्न कोटि है मित्रता में पगे मिले प्रेम की जो श्रद्धाभरी निष्ठा कहलाती है। मित्रता और प्रेम समान-समान के बीच घटता है। प्रेम विपरीत लिंगी के साथ होता है, और मित्रता समान लिंग के साथ, लेकिन दोनों समस्वप्न तल पर होते हैं। तुम समान होते हो।
करुणा तो निष्ठामयी श्रद्धा से बिलकुल भिन्न है। करुणा उच्चतर स्रोत से निम्नतर स्रोत की ओर बनी रहती है। वह हिमालय से समुद्र की तरफ बहती नदी की भांति है। बुद्ध करुणामय हैं। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके पास आता है, उनकी करुणा तो नीचे की ओर बह रही है। श्रद्धा बिलकुल विपरीत होती है। यह ऐसे है जैसे गंगा समुद्र से हिमालय की ओर बह रही होंनिम्नतर से उच्चतर की ओर।
प्रेम समान के बीच होता है, करुणा उच्चतर से निम्नतर की ओर होती है, और श्रद्धा निम्नतर से उच्चतर की ओर होती है।