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अगर तुम मोह नहीं रखते हो, तो तुम मुक्त होते हो। तुम्हारे पास बहुत ऊर्जा होती है। तुम किसी चीज पर निर्भर नहीं होते। तुम स्वतंत्र होते हो और यह ऊर्जा आंतरिक प्रयास में प्रवाहित की जा सकती है। यह ऊर्जा अभ्यास बन सकती है। अभ्यास क्या है? अभ्यास है पुराने अभ्यस्त ढांचों से लड़ना। हर धर्म ने बहुत सारे अभ्यास विकसित किये हैं, लेकिन उनका आधार पतंजलि का यह सूत्र
है।
उदाहरण के लिए, जब कभी तुम्हें यह पता चले कि तुम्हें क्रोध आ रहा है तो इसे सतत अभ्यास बना लो कि क्रोध में प्रवेश करने के पहले तुम पांच गहरी सांसें लो। यह एक सीधा-सरल अभ्यास है। स्पष्टतया क्रोध से बिलकुल संबंधित नहीं है और कोई इस पर हंस भी सकता है कि इससे मदद कैसे मिलने वाली है? लेकिन इससे मदद मिलने वाली है। इसलिए जब कभी तुम्हें अनभव हो कि क्रोध आ रहा है तो इसे व्यक्त करने के पहले पांच गहरी सांस अंदर खींचो और बाहर छोड़ो।
क्या होगा इससे? इससे बहत सारी चीजें हो पायेंगी। क्रोध केवल तभी हो सकता है अगर तुम होश नहीं रखते। और यह श्वसन एक सचेत प्रयास है। बस, क्रोध व्यक्त करने से पहले जरा होशपूर्ण ढंग से पांच बार अंदर-बाहर सांस लेना। यह तुम्हारे मन को जागरूक बना देगा। और जागरूकता के साथ क्रोध प्रवेश नहीं कर सकता। और यह केवल तुम्हारे मन को ही जागरूक नहीं बनायेगा, यह तुम्हारे शरीर को भी जागरूक बना देगा, क्योंकि शरीर में ज्यादा ऑक्सीजन हो तो शरीर ज्यादा जागरूक होता है। जागरूकता की इस घड़ी में, अचानक तुम पाओगे कि क्रोध विलीन हो गया है।
दूसरी बात, तुम्हारा मन केवल एक-विषयी हो सकता है। मन दो बातें साथ-साथ नहीं सोच सकता; यह मन के लिए असंभव है। यह एक से दूसरी चीज में बहुत तेजी से परिवर्तित हो सकता है। दो विषय एक साथ एक ही समय मन में नहीं हो सकते। एक चीज होती है, एक वक्त में। मन का गलियारा बहुत संकरा होता है। एक वक्त में केवल एक चीज वहां हो सकती है। इसलिए यदि क्रोध वहां होता, तो क्रोध वहां होता है, लेकिन यदि तम पांच बार सांस अंदर-बाहर लो, तो अचानक मन सांस लेने के साथ संबंधित हो जाता है। वह दूसरी दशा में मोड़ दिया गया है। अब वह अलग दिशा में बढ़ रहा होता है। और यदि तुम फिर क्रोध की ओर सरकते भी हो, तो तुम फिर से वही नहीं हो सकते क्योंकि वह घड़ी जा चुकी है।
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गुरजिएफ ने कहा था, जब मेरे पिता मर रहे थे, उन्होंने मुझसे केवल एक बात याद रखने को कहा, 'जब कभी तुम्हें क्रोध आये तो चौबीस घंटे प्रतीक्षा करो, और फिर वह करो जो कुछ भी तुम चाहते हो। अगर तुम जाकर कत्ल भी करना चाहते हो,जाओ और कर दो कत्ल, लेकिन चौबीस घंटे प्रतीक्षा करना।'