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बचपन के दौरान लगातार दोहराव गहरे उतरता जाता है क्योंकि बच्चे के पास वस्तुत: चेतन नहीं है। उसके पास अपना अचेतन ज्यादा है-बस ऊपरी हिस्से के पास ही। हर चीज अचेतन में प्रवेश करती है। जैसे-जैसे वह ज्यादा सीखेगा, जैसे वह शिक्षित होगा, चेतन एक ज्यादा मोटी परत बन जायेगा। तब कम और बहुत कम चीजें प्रवेश करेंगी अचेतन में।
मनसविद कहते हैं कि तुम्हारे सीखने का लगभग पचास प्रतिशत समाप्त हो जाता है जब तक कि तुम सातू वर्ष के होते हो। तुम्हारे जीवन के सातवें वर्ष तक, तुम लगभग वे आधी चीजें सीख चुके होते हो जो तुम्हें कभी जाननी होती हैं। तुम्हारी आधी शिक्षा समाप्त हो जाती है और यही आधा भाग आधार बनने वाला है। अब हर दूसरी चीज इस पर आरोपित मात्र होगी। गहरे में वही ढांचा बना रहेगा जो बचपन का है।
इसीलिए आधुनिक मनोविज्ञान, अधुनिक मनोविश्लेषण, मनोचिकित्सा, ये सभी बचपन तक उतरने की कोशिश करते हैं। यदि तुम मानसिक स्वप्न से बीमार हो तो मूल कारण को खोजना होता है कहीं तुम्हारे बचपन में; न कि वर्तमान में। वह ढांचा तुम्हारे बचपन में ही कहीं स्थापित मिलेगा। एक बार उस गहरे ढांचे का पता लग जाता है, फिर कुछ किया जा सकता है और तुम रूपांतरित हो सकते हो।
लेकिन गहरे कैसे प्रवेश करें गुम योग के पास एक विधि है; वह विधि अभ्यास कहलाती है।' अभ्यास' का अर्थ है किसी चीज को अविरत दोहराये जाने की प्रक्रिया। लेकिन ऐसा क्यों है कि दोहराव के द्वारा कोई चीज अचेतन बन जाती है? इसके कुछ कारण हैं।
यदि तुम कुछ सीखना चाहते हो, तो तुम्हें उसे दोहराना ही पड़ेगा। क्यों? यदि तुम कोई कविता बस एक बार पढ़ते हो,तुम शायद इधर-उधर से कुछ शब्द याद कर लो, लेकिन अगर इसे दो बार, तीन बार, बहुत ज्यादा बार पढ़ लेते हो, तब तुम याद कर सकते हो पंक्तियों को, पैराग्राफ को। यदि तुम इसे सौ बार दोहराते हो, तब तुम इसे संपूर्ण ढांचे की भांति याद कर सकते हो। और अगर तुम और भी ज्यादा दोहराते हो, तो यह बनी रह सकती है, यह वर्षों तक तुम्हारी स्मृति में बनी रह सकती है। तुम इसे भूल न सकोगे।
क्या घट रहा है? जब तुम एक निश्चित चीज को दोहराते जाते हो, जितना ज्यादा तुम दोहराते हो, उतनी ज्यादा यह मस्तिष्क कोशिकाओं पर अंकित हो जाती है। सतत दोहराव एक सतत चोट है। तब वह मन पर अंकित हो जाता है। वह तुम्हारी मस्तिष्क कोशिकाओं का एक हिस्सा हो जाता है। और जितना ज्यादा यह तुम्हारी मस्तिष्क कोशिकाओं का हिस्सा बनता है,चेतना की आवश्यकता उतनी ही कम होती है। तुम्हारी चेतना आगे बढ़ सकती है, अब उसकी जरूरत नहीं है।
इसलिए जो कुछ तुम गहनता से सीखते हो, तुम्हें उसके प्रति सचेत होने की जरूरत नहीं होती है। शुरू में जब तुम ड्राइविंग सीखते हो तो कार चलाना एक सचेत प्रयास होता है। इसीलिए यह