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नसरुद्दीन बोला, धन्यवाद। यही तो मेरे गुरु ने मुझसे कहा था। ऐसा ही वचन मैंने दिया था गुरु को और अगर तुम मरते दम तक इस रहस्य को गोपनीय रख सकते हो तो क्या समझते हो, मैं इसे रहस्य नहीं रख सकता क्या?
यदि बुद्ध मौन रहे थे, तो मैं भी इसके बारे में मौन रह सकता हूं। यह कुछ ऐसा है कि जिसे कहा नहीं जा सकता। यह संदेश नहीं है क्योंकि संदेश हमेशा बताये जा सकते हैं। यदि उन्हें नहीं बताया जा सकता, तो वे संदेश नहीं होते। संदेश कुछ वह है जिसे कहा जाता है; वह कुछ जिसे कहा जाना है जो कहा जा सकता है संदेश हमेशा शाब्दिक होता है।
लेकिन बुद्ध के पास कोई संदेश न था, इसलिए वे उसे कह न सकते थे। उनके दस हजार शिष्य थे, लेकिन केवल महाकाश्यप को वह मिला क्योंकि वह बुद्ध के मौन को समझ सकता था। यही रहस्यों का रहस्य था वह मौन को समझ सकता था।
एक सुबह बुद्ध वृक्ष के नीचे बैठे मौन ही बने रहे। उन्हें प्रवचन देना था और सब भिक्षुप्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन वे मौन बने रहे। शिष्य बेचैन होने लगे। पहले ऐसा कभी न हुआ था। साधारणतया वे आते और वे बोलते और चले जाते। लेकिन कोई आधा घंटा बीत गया था। सूर्योदय हो गया था और प्रत्येक व्यक्ति को गर्मी लग रही थी। ऊपरी तौर पर वहां मौन था, लेकिन भीतर हर कोई बेचैन था। वे बातें कर रहे थे, भीतर पूछ रहे थे, क्यों बुद्ध चुप है आज ?
वे वहा बैठे थे हु वृक्ष के नीचे हाथ में फूल लिये हुए और फूल को ही देखे चले जा रहे थे; जैसे कि वे सजग न हों उन दस हजार शिष्यों के प्रति, जो उन्हें सुनने के लिए इकट्ठे हुए थे। वे बहुत - बहुत दूर से आये थे। देश भर के गांवों से वे आये थे और इकट्ठे थे।
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अंततः किसी ने पूछा, किसी ने साहस एकत्रित किया और पूछा, आप बोल क्यों नहीं रहे हैं? हम प्रतीक्षा कर रहे है । ' कहा जाता है कि बुद्ध ने कहा, 'मैं बोल रहा हूं। इस आधे घंटे में बोलता रहा हूँ मैं।'
यह अत्यंत विरोधाभासी था। यह स्पष्टतया असंगत था। वे मौन ही रहे थे, वे कुछ नहीं बोले थे लेकिन बुद्ध से कहना कि आप बेतुकी बातें कर रहे है, संभव न था, अतः शिष्य फिर चुप रह गये। ज्यादा तकलीफ में थे अब ।
अचानक एक शिष्य, महाकाश्यप हंस पड़ा। बुद्ध ने उसे समीप बुलाया, उसे वह फूल दे दिया और बोले, 'जो कुछ भी कहा जा सकता है, मैने दूसरों से कह दिया है; और जो कुछ नहीं कहा जा सकता है वह मैंने तुम्हें दे दिया है।" उन्होंने केवल फूल ही दिया था, लेकिन यह फूल तो प्रतीक मात्र था। फूल के साथ उन्होंने कुछ अर्थ भरा भी दे दिया था। वह फूल एक प्रतीक मात्र था, लेकिन और दे दिया गया था, जिसे शब्दों द्वारा नहीं कहा जा सकता था।
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