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प्रवेश कर गयी। तुम्हें लगता है जैसे कि तुम इस आदमी को जानते ही हो। अब इसे जानने की कोई आवश्यकता न रही। तुम जानते हो यह किस तरह का आदमी है. एक यहूदी!
तुम्हारा पहले से ही धारणा बना लेने वाला, पूर्वाग्रही मन है। और यह पूर्वापही मन तुम्हें असत ज्ञान देता है। सभी यहूदी बुरे नहीं होते हैं, न ही सब ईसाई अच्छे होते हैं। न सारे मुसलमान बुरे होते हैं और न सभी हिंदू अच्छे होते हैं। वस्तुत: अच्छाई और बुराई का संबंध किसी जाति से नहीं होता है। इसका संबंध व्यक्तियों से है। बुरे मुसलमान हो सकते हैं या बुरे हिंदू हो सकते हैं, अच्छे मुसलमान होते हैं या अच्छे हिंदू होते हैं। अच्छाई और बुराई का किसी देश से, किसी जाति से, किसी सभ्यता से कोई संबंध नहीं है। इसका संबंध व्यक्तियों से है, व्यक्तित्व से है। लेकिन कठिन है बिना किसी पूर्वाग्रह वाले व्यक्ति का सामना करना। यदि तुम कर सको, तो तुम एक नया बोध पाओगे।
एक बार मेरे साथ कुछ घटित हुआ, जब मैं यात्रा कर रहा था। मैं अपने डिब्बे में दाखिल हुआ,बहुत से लोग मुझे छोड़ने आये हुए थे, तो वह व्यक्ति, वह दूसरा यात्री जो डिब्बे में था, फौरन मेरे पैर छूने लगा और बोला,' आप तो कोई बड़े संत ही होंगे। इतने सारे लोग आपको छोड़ने आये।'
मैंने उस आदमी से कहा, 'मैं मुसलमान हूं। शायद मैं बड़ा संत हूं लेकिन मैं मुसलमान हूं।' उसे झटका लगा। उसने मुसलमान के पांव छू लिये थे, और वह एक ब्राह्मण था। उसे पसीना आने लगा। वह घबड़ा गया था। उसने फिर मेरी ओर देखा और बोला, 'नहीं, आप मजाक कर रहे हैं।' केवल अपने को तसल्ली देने के लिए ही उसने कहा था, 'आप मजाक कर रहे हैं।' 'मैं मजाक नहीं कर रहा हूं। मैं क्यों करूंगा मजाक?' मैंने कहा, 'मेरे पांव छूने से पहले तुम्हें पूछताछ कर लेनी चाहिए थी उसके बारे में।'
फिर हम दोनों साथ थे डिब्बे में। बार-बार वह मेरी ओर देख लेता। और वह लंबी., गहरी सांस भरता। वह जरूर सोच रहा होगा जाकर खान कर लेने की बात। वह मुझसे साक्षात्कार नहीं कर रहा था। मैं वहां मौजूद था, लेकिन उसके लिए महत्व रखती थी अपनी मुसलमान संबंधी धारणा; और यह कि वह ब्राह्मण था; कि मुझे छू लेने से अशुद्ध हो गया है।
चीजें जैसी हैं, वैसा उनके साथ कोई साक्षात्कार नहीं करता है। तुममें पूर्वधारणाए हैं। ये पूर्वाग्रह विपर्यय का निर्माण करते हैं। ये पूर्वधारणाएं असत ज्ञान का निर्माण करता हैं। जो कुछ भी तुम सोचते हो, यदि तुमने तथ्य को ताजे स्वप्न में नहीं पाया है तो वह गलत ही होने वाला है। अपने अतीत को बीच में मत लाओ; अपने पूर्वाग्रहों को बीच में मत लाओ। अपने मन को एक तरफ रख दो और तथ्य का साक्षात्कार करो। जो कुछ भी देखने को है, केवल देखो उसे। प्रक्षेपण मत करो।
हम प्रक्षेपण किये चले जाते है। हमारे मन तो बस बचपन से ही पूरी तरह मरे हुए, जड़ हुए होते हैं। हर चीज हमें बनी-बनायी दे दी गयी है, और उस बने-बनाये तैयार ज्ञान दवारा सारा जीवन एक भ्रांति बन गया है। तुम वास्तविक व्यक्ति से कभी नहीं मिलते। तुम वास्तविक फूल कभी नहीं