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सतरहभेदी-पूजा -
७१.. -प्रथम न्हवण पूजा ॥
॥ राग देशास ॥ • पूर्व मुख सावन, करि दणन पावनं, अहत धोती धरी, उचित मानी (अइयो)। विहित मुखकोशके, सीरगंधोदके, सुभृत मणिकलश करि विविध वानी ॥ अ० ॥ १॥ नमिवि जिन मुंग, लोम हस्ते नव, मार्जन करिय जिनं वारि वारि | अ० । भणिय कुसुमाजली, कलश विधि मन रली, न्हवति जिन इन्द्र जिम, तिम अगारी ॥ अ० २ ॥
॥दोहा॥ पहिली पूजा साचवे, श्रावक शुभ परिणाम | शुचि पताल तनु जिन तणे, करे सुकृत हितकाम ।। परमानद पीयप रस, न्हवण मुगति सोपान । धरम रूप तरु सींचत्रा, जलधर धार समान ॥
|| राग सारंग तथा मल्हार ॥ पूजा सतर प्रकारी, सुणियोरे मेरे जिन (वर ) की। परमानन्द तिण अति छल्योरी सुधारस, तपत चुमी मेरे तनकी हो ॥पू० ॥१॥ प्रभु विलोकि नमि जतन