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[ ६० ] मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अर्ह परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये, जन्म-जरा-मृत्यु निवारणय, श्रीसम्यग् ज्ञानपदे,.. पंचामृतं-चंदनं-पुष्प-धूप-दीपं-अक्षतान्-नैवेद्य-फलं-वस्त्रं-वासं यजामहे स्वाहा। ॥ अथ अष्टमी श्री सम्यग चारित्र पद पूजा ॥
॥दोहा॥ अष्टम पद चारित्र नो, पूजो धरी उमेद । पूजत अनुभव रस मिले, पातिक होय उच्छेद ॥१॥
॥ काव्यम् इन्द्रवज्रावृत्तम् ॥ आराहियाखंडिअसक्किअस्स, नमो नमो संजम वीरिअस्स ।। सम्भावणासंगविवट्टिअस्स, निवाणदाणाइ समुज्जयस्स ॥१॥
॥ भुजंग प्रयातवृत्तम् ॥ फले जेह सम्पूर्ण थी तत्कालं,
गुणाणंपि सर्वात्म भावे विशालं। जिणे आदस्यो जे प्रयत्ने करीने,
दीयो लोकने जे अनुग्रह धरीने ॥१॥ हुवे जेहथी रंक लोकोपि पूज्यो,
गुण श्रेणिथी दीपतो जेम सूों ।